भिलाई के नेहरू नगर में बांके बिहारी चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा नारायण सेवा संस्थान के सहयोग से आयोजित ‘नानी बाई रो मायरोÓ के मंच पर सबसे पहले पढ़ी गई दुष्यंत कुमार की कालजयी पंक्तियां। संस्कार टीवी के एंकर ने कुछ इस तरह से कार्यक्रम की शुरुआत की। उनका आशय अपंगों के आपरेशन, उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की चेष्टाओं से था।
हो गई है पीर पर्वत-सी
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए। [More]
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
ठाकुर जी को प्रिय है निष्काम भक्ति
व्यास गद्दी से कथा व्यास जया किशोरी ने कहा कि ठाकुर जी को सिर्फ निष्काम भक्ति ही प्रिय है। उन्होंने कहा कि जिस तरह माता को अपने से ज्यादा अपनी संतान की प्रशंसा प्यारी होती है, उसी तरह भगवान को भी अपने से ज्यादा अपने भक्त की स्तुति अच्छी लगती है। इसलिए भगवान को पाने के लिए उसके भक्तों की कथा कही जानी चाहिए। उन्होंने नरसी मेहता की भक्ति की चर्चा करते हुए कहा कि वे जन्मजात गूंगे-बहरे थे। उनकी दादी उन्हें मंदिरों और बाबाओं के पास ले जाती। उसे भजन और कीर्तन सुनाती। ऐसे ही एक बार शिवालय में पधारे एक नए महाराज की गोद में उन्होंने बालक नरसी को रख दिया। महाराज ने उसके कान में राधे-राधे कहा और बालक बोलने लगा। इसके बाद वह उम्र भर केवल भगवान की भक्ति में ही लगा रहा। शिवजी ने एक बार प्रसन्न होकर उनसे वरदान मांगने को कहा तो उन्होंने भगवान की रासलीला देखने की इच्छा जताई। शिवजी उन्हें सशरीर गोकुलधाम ले गए। वहां उन्होंने भगवान का रास देखा। लौटकर उन्होंने उसी का वर्णन पृथ्वी वासियों को सुनाया। उसकी पुत्री की पुत्री के ब्याह में उनके पास मायरा भरने के लिए भी कुछ नहीं था। तब भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं सपत्नीक उपस्थित होकर मायरा भरा।