नई दिल्ली। आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी निभा रहे ये जवान न तो अपने बच्चों को गोद में खिला पाते हैं और न ही बूढ़े माता पिता की सेवा कर पाते हैं। और तो और वे उस पत्नी से भी दूर हो जाते हैं जो हजार सपने सजाकर उसके पास आती है। इनके बच्चों में से केवल 42 फीसदी ही मैट्रिक से आगे पढ़ पाते हैं। इस एकाकीपन का इन जवानों की शारीरिक एवं मानसिक सेहत पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। more
सिक्यॉरिटी फोर्सेस के लिए तैयार एक रिपोर्ट में इसका जिक्र किया गया है। सीआरपीएफ के 3 लाख सैनिकों की मौजूदा स्थिति के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि इनलोगों की वैवाहिक जिंदगी में तो दिक्कतें आती ही हैं, साथ ही पारिवारिक समस्याएं भी रहती है जिससे उनके बच्चों की अच्छी शिक्षा सुनिश्चित नहीं हो पाती। रिपोर्ट में जवानों के दयनीय जीवन स्तर और कार्य हालात के साथ ही कमजोर मनोबल और स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का भी उल्लेख किया गया है।
इसमें कहा गया है कि सिक्यॉरिटी फोर्सेस के 80-89 पर्सेंट जवान हर समय तैनाती पर रहते हैं। इनमें 80-85 पर्सेंट जवानों की तैनाती लगातार माओवाद प्रभावित 10 राज्यों (37 पर्सेंट), जम्मू कश्मीर (28 पर्सेंट) और उग्रवाद प्रभावित नॉर्थ ईस्ट के राज्यों (16 पर्सेंट) में होती है।
इन सारी समस्याओं के समाधान के लिए ये रिपोर्ट सरकार को सौंपी गई है। रिपोर्ट के मुताबिक, बेहद कठिन हालात और लोगों के लिए प्रतिकूल परिस्थितियों को देखते हुए सीआरपीएफ के जवान अपने परिवार और समाज में विवाह, मौत और अन्य समाराहों में मौजूद रहने की अपनी सामाजिक जिम्मेदारियां नहीं निभा पाते हैं। इससे उनमें अलगाव की भावना पनपती है। वे पर्याप्त वैवाहिक जिम्मेदारी भी नहीं पूरी कर पाते और समाज से अलग थलग पड़ जाते हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सीआरपीएफ के जवानों को अपने लिए और अपने बच्चों के लिए सुयोग्य जीवनसाथी ढूंढऩे में भी दिक्कतें आती है।
रिपोर्ट में कहा गया कि 85 पर्सेंट जवानों की तैनाती ऐसी जगह होती है जहां पर उन्हें परिवार को रखने की अनुमति नहीं होती। सीआरपीएफ कर्मियों के बच्चों की शैक्षिक स्थिति के सर्वेक्षण से पता चला कि केवल 42 पर्सेंट ही मैट्रिक से आगे बढ़ पाते हैं।