भिलाई। महर्षि वेदव्यास और उपन्यास सम्राट् मुंशी प्रेमचंद दोनों ही लोक मानस की चिन्ताओं और समस्याओं के समाधानों की बात करते हैं। लोकसंस्कृति के द्वारा लोग अपनी संस्कृति को पहचान पाते हैं। वेद व्यास की संस्कृति लोक संस्कृति में समा गयी है। आज केवल अधिकार की बात करना एक फैशन हो गया है। बिना कर्तव्य के कभी अधिकार न मिला है, न मिलेगा। मुंशी प्रेमचन्द उपन्यास की व्याख्या में बताते है, कि मनुष्य के अधिकार और कर्तव्य साथ-साथ चलते है। Read More
ये विचार हैं इन्दिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ के हिन्दी के एसोसिएट प्रोफेसर एवं ओजस्वी वक्ता डॉ. राजन यादव के। डॉ. यादव शासकीय महाविद्यालय वैशालीनगर में मुख्यवक्ता के रूप में अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। इन्दिरा गान्धी शासकीय महाविद्यालय वैशालीनगर में संस्कृत विभाग, हिन्दी विभाग एवं साहित्य संस्कृति कला परिषद् द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित अकादमिक संगोष्ठी का अयोजन किया गया था।
महामुनि वेद व्यास एवं मुंशी प्रेमचंद के साहित्य में मानवधिकार एवं कर्तव्य विषय पर केन्द्रित अपने प्रभावशाली उद्बोधन में डॉ. यादव ने डॉ. रामधारी दिनकर के कुरुक्षेत्र के अनेक उदाहरणों से अधिकारों से अधिक कर्तव्य की सत्ता सिद्ध की। उनके अनुसार प्रेमचंद धन खोकर भी आत्मा और नैतिकता की रक्षा के पक्षधर थे। वे प्रकृति के पुजारी थे तो व्यास जी मनुष्य का जीवन कर्तव्य और अधिकार के के माध्यम से आनन्दमय बनाना चाहते थे। अपने वचनों के पक्ष में डॉ. यादव ने छत्तीसगढ़ी लोकगीतों की प्रासंगिक प्रस्तुति देकर प्रभाव छोड़ा।
महाविद्यालय के प्राचार्य एवं सदस्य, छत्तीसगढ़ संस्कृत विद्यालम, छ.ग. शासन आचार्य डॉ. महेशचन्द्र शर्मा ने कहा कि महामुनि वेदव्यास के अट्ठारह पुराणों का सार है- परोपकार पुण्य है, परपीड़ा पाप है। धर्म का निचोड़ यह है कि हम वैसा व्यवहार दूसरों से न करें, जैसा स्वयं के लिये पसंद न करते हों। कर्तव्य प्रधान और अधिकार प्राप्ति विषयक चिन्तन को लेकर जो बातें महाभारत में कह दी गई हैं, वे ही सब जगह फिर से कही गई हैं, जो इस में नहीं है, वह कहीं नहीं है। कर्तव्य के बिना अधिकार की बात बेमानी है। गीता में तो व्यास जी ने कर्म करने को ही अधिकार माना है। छत्तीसगढ़ मानवाधिकार आयोग का आदर्श वाक्य भागवत महापुराण से प्रभावित हैं। आचार्य डॉ. शर्मा ने आगे कहा कि भारतीय संस्कृति के पंचरत्न सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अस्तेय और अपरिग्रह में सभी के कर्तव्य और अधिकार समाये हुए हैं।
सर्वे भवन्तु सुखिन: और वसुधैव कुटुम्बकम् का व्यावहारिक चिन्तन भारत ने पूरे विश्व को दिया धन, धरती, स्त्री, और सम्पत्ति की समस्यायें व्यास जी और प्रेमचंद में एक समान है। पाण्डवों को सुई की नोंक के बराबर जमीन न देने की दुर्योधन की दम्भोक्ति ही तो महायुद्ध का आधार बनी। डॉ. शर्मा ने व्यास के वचन याद दिलाया कि पेट भरने से अधिक जमाखोरी करने वाला चोर और दण्डनीय है। आवश्यकता के अनुसार रखने पर ही उसका अधिकार है। आभार ज्ञापन श्रीमती कौशल्या शास्त्री ने किया। संचालन डॉ. कैलाश शर्मा ने किया।
मौके पर डॉ. श्रीमती मेरिली राय, डॉ. सुबोध सिंह डॉ. श्रीमती रबिन्दर छाबड़ा एवं क्रीड़ाधिकारी यशवंत देशमुख के साथ प्रबुद्ध शिक्षकगण एवं बड़ी संख्या में विद्यार्थीगण उपस्थित रहे। कार्यक्रम के अंत में भारतरत्न महान वैज्ञानिक एवं दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम को भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई।