भिलाई। पद्मभूषण डॉ तीजन बाई ने 31 अगस्त को भिलाई इस्पात संयंत्र की सेवा से अवकाश प्राप्त कर लिया। दो दो पद्म पुरस्कारों से सम्मानित पंडवानी गायिका तीजन बाई 30 साल बीएसपी की सेवा में रहीं। बीएसपी जनसम्पर्क के अधिकारियों से इस मौके पर उन्होंने कुछ खास बातें साझा कीं। ”आज मैं जिस मुकाम पर पहुंची हँू वह सिर्फ भिलाई इस्पात संयंत्र के कारण। ग्राम हल्दी से मुझे बुला कर मडई में पंडवानी गाने के लिये लाया गया था। तब मैं बहुत कम उम्र की थी। बाद में मुझे बी एस पी ने नौकरी दी किन्तु मुझे बांध कर नही रखा। मुझे पूरी स्वतंत्रता और आजादी मिली अपनी कला के लिये। बी एस पी ने नौकरी तो दे दी किन्तु मुझे मेहनत नहीं करनी पड़ी। आपकी सफलता में जो साथ देता है वो महान होता है। भिलाई इस्पात संयंत्र और उसके लोग मेरे लिये महान है। उनके योगदान को मैं कभी भूला नहीं पाउंगी।”
संयंत्र की लगभग 30 वर्ष की कार्यसेवा के बाद सेवानिवृत्त हो रही डॉ. तीजन बाई से सौजन्य भेंट करने तथा उनके सुखद और समृद्ध जीवन की कामना के साथ जनसंपर्क विभाग के प्रमुख उप महाप्रबंधक (जनसंपर्क) विजय मैराल, सहायक महाप्रबंधक (जनसंपर्क) सुबीर दरिपा और सहायक महाप्रबंधक (जनसंपर्क) प्रशान्त तिवारी एवं फोटोग्राफर एस एम जोशी दोपहर 12.30 बजे उनके निवास पर पहुंचे। बड़ी निश्चिंतता से बैठी डॉ. तीजन बाई ने ही हमारा स्वागत किया और बैठाया। उन्होंने ही चर्चा प्रारंभ की और बताया कि मैं ग्राम गनियारी की रहने वाली हँू और मैं 13 वर्ष की उम्र से पंडवानी गाने लगी थी। मुझे ग्राम हल्दी में भिलाई की मडई में आने और पंडवानी प्रस्तुत करने कहा गया। वह दिन था और मैं भिलाई से जुड़ गई। मैंने पीछे मुडकर नही देखा। जीवन में बहुत से उतार चढाव आये किन्तु मेरी मेहनत ने मुझे हमेशा आगे ही बढाया।
अपने बचपन और पंडवानी गायन से जुडऩे की रोचक कहानी अपनी चिरपरिचित शैली में बताते हुए कहा कि हम लोग पारधी (शिकारी) परिवार से थे। हमारा घर मेरे नाना श्री बृजलाल पारधी के घर के नजदीक ही था। सबसे पहले मैंने उनके मुख से ही महाभारत की कथा को सुना। मैं उनसे बहुत डरती थी, किन्तु इसके बावजूद मैं पंडवानी से जुड़ी। मेरे नाना जी ने ही पहली बार मेरे अंदर की कला को समझा और कहा कि मेरे घर में ही एक कलाकार छुपा है और मुझे पता ही नहीं चला। फिर उन्होंने ही पंडवानी एवं महाभारत की कथा से पूरा परिचय करवाया। बाद में मैं उमैद सिंह देशमुख से पंडवानी की शिक्षा ली।
पूरे देश में 212 बच्चों को अब तक पंडवानी गायन सिखा चुकी डॉ. तीजन बाई ने कहा कि आने वाली पीढ़ी को बहुत मेहनत करने की आवश्यकता है। मेरी यह कला और पनपे यही मेरी इच्छा और आशीर्वाद है। उन्होंने कहा कि मेहनत का कोई तोड़ नहीं है। आप जितनी मेहनत करेेंगे उतना ही आगे बढ़ेंगे। लगन और मेहनत ही सफलता की कुंजी है। कला में तो खास कर लगन, प्रेम और मेहनत तीनों का योगदान जरूरी है।
एक संस्मरण की चर्चा करते हुए डॉ. श्रीमती तीजन बाई ने कहा कि मैं बी एस पी और भिलाई को कभी छोड़ नहीं सकती हँू। आज मैं रिटायर्ड जरूर हो रही हँू किन्तु पंडवानी की मेरी तान भिलाई, छत्तीसगढ़ और देश विदेश में गूंजती रहेगी।
इससे पहले डॉ. तीजन बाई को भिलाई निवास के बहुउद्देशीय सभागार में भिलाई इस्पात संयंत्र के मुख्य कार्यपालक अधिकारी एम रवि ने स्वयं सम्मानित करते हुए गरिमामय विदाई दी।
श्री रवि ने कहा कि भिलाई के लिये गर्व की बात है कि हमारे यहाँ डॉ. श्रीमती तीजन बाई जैसी श्रेष्ठ और समर्पित कलाकार थी जिन्होने न केवल भिलाई इस्पात संयंत्र, भिलाई, छत्तीसगढ़ और देश का नाम पूरे विश्व में रौशन किया है।
सम्मानित होने के बाद डॉ. श्रीमती तीजन बाई ने कहा कि आज मैं जो कुछ भी बन पाई हँू वह भिलाई इस्पात संयंत्र की वजह से। मेरी जैसी सामान्य और ग्रामीण परिवेश से आई लड़की यदि कुछ बन पाई तो वह भिलाई इस्पात संयंत्र की बदौलत। मैं जीवन भर भिलाई इस्पात संयंत्र और उसके प्रबंधन के प्रति आभारी रहँूगी।