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भक्ति से ही होगी आनंद प्राप्ति : गोपिकेश्वरी

Dec 6, 2016

gopikeshwari-devi-jiभिलाई। जगदगुरू कृपालु महाराज की कृपा प्राप्त प्रचारिका गोपिकेश्वरी देवी ने दार्शनिक प्रवचन शृंखला में चौदहवें दिन भक्तिमार्ग की व्या या का आरंभ किया। उन्होंने कहा कि कर्म मार्ग से यदि हम चलना चाहें तो आनंद प्राप्ति और दुख निवृत्ति के लिए हमें उसमें भक्ति का योग करना होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि भक्ति ही जीव का अंत: करण शुद्ध कर सकती है। भक्ति के योग से कर्म के 2 स्वरूप कर्मयोग और कर्म संन्यास बन जाते हैं। कर्मयोग का अर्थ है जिसमें शरीर से कर्म करते हुए मन से ईश्वर की भक्ति की जाए। इससे ईश्वरीय जगत के सिद्धांत के अनुरूप मन के ही कर्म का फल मिलेगा और नया कर्मबंधन नहीं लगेगा, जिससे एक दिन वह हमारा अंत:करण शुद्ध कर देगा और आनंदप्राप्ति करा देगा। इसी की भांति एक कर्मसंन्यास भी है जिसमें शरीर से कर्म धर्म का स्वरूप: त्याग कर दिया जाता है। यह भी ईश्वरप्राप्ति कराती है लेकिन संत और भगवान कर्मयोग का ही आश्रय लेते हैं और हमें भी कर्मयोग को ही अपनाना है।इसके आगे भक्तिमार्ग की व्या या की गई कि जिस प्रकार कर्म, ज्ञान, योग आदि साधना में जब तक भक्ति प्लस नहीं होती तब तक वे परमानन्द नहीं देते। वैसा भक्ति के साथ नहीं है। भक्ति को किसी अन्य साधन की आवश्यकता नहीं है। भक्ति जीव के समस्त कर्मबंधन का नाश कर उसे अनंतकाल का परमानन्द और भगवत्सेवा प्रदान कर देती है। इसके आगे कहा कि भक्ति भगवान की बसे अंतरंग शक्ति है जिसे भगवान सहज किसी को नहीं देते। इसके लिए हमें पहले साधना भक्ति करनी होगी, उससे ही हमारा अंत:करण उस दिव्य प्रेम को धारण करने योग्य बन पाएगा।
दूसरी शर्त है कि हमको भक्ति विशुद्ध रूप से करनी है अर्थात उसे कर्म, ज्ञान आदि के मिश्रण से युक्त रखना होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि भक्ति सभी प्रकार के फलों को प्रदान करने वाली है। उसके लिए औरकुछ साधन की आवश्यकता नहीं है। यह भी याद रखना है कि भक्ति हमको निष्काम भाव से करनी है। भक्ति के बदलेकेवल भक्ति की ही चाह रखनी है। जैसा काक भुशुंडि ने किया था। जब राम ने उनसे मनचाहा वर मांगने को कहा तब उन्होंने मांगा था अविरल भक्ति विशुद्ध तब वहीं प्रहल्दान ने भी मांगा कि परम निष्काम हो जाऊँ ऐसा वर दीजिए।
फोटो कैप्शन : प्रवचनकर्ता गोपिकेश्वरी देवी को स्मृतिचिन्ह भेंट करते भाजपा नेता दया सिंह।

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