नई दिल्ली। भाजपा के धाकड़ नेताओं को अगले दो वर्षों में होने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनावों में अनदेखी का डर सताने लगा है। उन्हें डर है कि टिकट बंटवारे में मोदी-शाह की जोड़ी उनकी भूमिका को किनारे लगाने वाली है। उत्तर प्रदेश में भारी सफलता के बाद दूसरे राज्यों में होने वाले विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनाव में टिकट बंटवारे को लेकर वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं की चिंता बढ़ गई है। पार्टी नेतृत्व ने उम्मीदवार की जीत की ‘क्षमता’ को परखने के लिए कड़े पैरामीटर तय किए हैं। पार्टी ने दिल्ली नगर निगम चुनाव में नए लोगों को टिकट देने का फैसला किया है। पार्टी नेतृत्व सांसदों और क्षेत्रीय नेताओं की अनदेखी करने से भी परहेज नहीं कर रहा है। केवल दमदार उम्मीदवार देने वाले सांसदों और नेताओं की ही सुनी जा रही हैं। गुजरात, कर्नाटक, राजस्थान और मध्य प्रदेश में 2018 में चुनाव होने हैं। यूपी में प्रयोग काम कर जाने के बाद दिल्ली में एमसीडी चुनाव की तैयारी की जा रही है, जिसमें नए उम्मीदवारों का चयन करना है। दिल्ली में भाजपा को आम आदमी पार्टी और कांग्रेस से चुनौती मिल रही है।
कहीं चला कहीं पिटा फार्मूला
अमित शाह और नरेंद्र मोदी ने महाराष्ट्र और हरियाणा में भी यह प्रयोग किया था, जहां सफलता मिली थे। लेकिन बिहार और दिल्ली में यह प्रयोग विफल रहा था। यूपी चुनाव की जीत काडर और नेता को चुनने में नेतृत्व को प्रोत्साहित करेगी। वरिष्ठ नेताओं और यूपी में कार्यकर्ताओं की अनदेखी के कारण पार्टी सिर्फ एक व्यक्ति पर केंद्रित बनती जा रही है। पार्टी के एक सूत्र ने कहा कि 2019 में लोगों को स्थानीय नेता को चुनने की जगह मोदी, उनकी राजनीतिक और उनकी नीतियों को चुनना चाहिए।