भिलाई। अपने बुलन्द हौसलों से हालात को चुनौती दे रहा है बालक गोपाल। छत्तीसगढ़ मास्टर माइंड प्रतियोगिता में तीसरा स्थान बनाकर सुर्खियों में आए गोपाल मिश्रा का जीवन भी संघर्ष की दास्तान है। इस प्रतियोगिता में 2300 बच्चों ने भाग लिया था। पर कहते हैं जहां चाह होती है, वहां राह भी निकल आती है। वह इसका जीता जागता मिसाल है। शकुंतला स्कूल के 11वीं कक्षा का गणित का यह विद्यार्थी मेधावी है। वह सेना में जाना चाहता था। पर घर वालों ने मना कर दिया। इसके पीछे भी एक दुखद दास्तान है। उसके पिता स्व. सुबोध कुमार मिश्रा निजी क्षेत्र में गार्ड का काम करते थे। अक्टूबर 2012 की एक काली रात में उन्होंने ड्यूटी करते हुए अपनी जान गंवा दी। जिस फैक्ट्री में वे काम करते थे वहां चोरों ने धावा बोल दिया था। चोरों ने उनके सिर पर लोहे के सरिया से वार कर दिया था। तीन भाई बहनों में सबसे बड़ा गोपाल उस समय केवल 10-11 साल का था। जल्द ही उसने अपने आंसू पोंछ लिया और भविष्य निर्माण के लिए पूरी ताकत लगा दी। पिता चाहते थे कि वह पढ़ लिखकर खूब नाम कमाए। इसीलिए उसे इंग्लिश मीडियम में दाखिला दिलाया था। उसने पूरे लगन के साथ पढ़ाई शुरू कर दी और जल्द ही स्कूल के मेधावी बच्चों में उसकी गणना होने लगी। आज स्कूल के डायरेक्टर ेसे लेकर प्राचार्य एवं शिक्षकवृंद का वह चहेता है। पिता की अकाल मृत्यु से घर में आर्थिक तंगी हो गई। मां ने एक ज्वेलरी दुकान में नौकरी कर ली। किसी तरह घर की गाड़ी आगे बढऩे लगी। गोपाल 15 साल का हुआ तो उसने अपनी मां का हाथ बंटाना शुरू कर दिया। उसने स्कूल से बचे हुए वक्त में अखबार बांटना शुरू कर दिया। विज्ञापन का काम भी शुरू कर दिया, जिससे कुछ कमीशन बनने लगा। पर नहीं छोड़ा सपनों का दामन गोपाल बताता है कि दूसरे बच्चों की तरह उसके भी अरमान हैं। उसे पता है अभी हालात उसके पक्ष में नहीं है पर वह यह भी जानता है कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। उसे क्रिकेट पसंद है। दसवीं तक स्कूल टीम में खेलता भी रहा। 11वीं-12वीं के बच्चों को इससे अलग रखा जाता है इसलिए फिलहाल क्रिकेट स्थगित है। शरीर सौष्ठव का शौक है। जिम नहीं जा सकता इसलिए टूटी बाल्टी में कंक्रीट जमाकर डम्ब-बेल बना रखा है। उसीसे कसरत कर लेता है। वह जल्द से जल्द रोजगार हासिल कर परिवार को बेहतर जिन्दगी देना चाहता है। प्राथमिकता में इंजीनियरिंग है, पर दूसरे विकल्प भी खुले हैं।