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मेडिटेशन से बढ़ती है विचारों की शुद्धता : ब्रह्मकुमारी उषा

Dec 20, 2017
भिलाई। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के 80 वर्ष पूर्ण होने पर 15 से 20 दिसंबर तक प्रात: सत्र सुबह 6:30 से 8 बजे तक पीस आॅडिटोरियम, सड़क-2, सेक्टर-7, में तथा संध्या 7 से 8.30 बजे तक सेक्टर 6, पुलिस र्ग्राउंड में विशेष शिविर का आयोजन किया जा रहा है। इस नि:शुल्क शिविर में अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय माउण्ट आबू की वरिष्ठ राजयोग शिक्षिका और मैनेजमेंट ट्रेनर ब्रह्माकुमारी उषा के तनावमुक्ति और सकारात्मकता के राजयोग के प्रेरक मंत्र के साथ संस्था की विकास यात्रा पर आयोजित प्रदशर्नी आकर्षण का प्रमुख केंद्र होगी।
ब्रह्माकुमारी उषा

भिलाई। नकारात्मक विचार हमारे मन को एकाग्र होने नहीं देते है। मेडिटेशन से धीरे-धारे हमारे विचारों की शुद्धता बढ़ती जाती है। उक्त उद्गार प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय द्वारा संस्था के 80 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में आयोजित राजयोग शिविर में वरिष्ट राजयोगी ब्रह्माकुमारी उषा ने कही। उन्होंने कहा कि हमें बच्चों की भावनाओं को समझने का प्रयत्न करना है, उनकी सदगुणों से परवरिश करनी है। बचपन में शिक्षक के प्रति हमारी श्रेष्ठ भावना रहती है और बड़े होने के साथ वह भाव टूट जाता है जिससे शिक्षा में गिरावट आती है। जीवन के अंदर हर परिस्थति हमें पाठ पढ़ाती है। परम शिक्षक, परमात्मा का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए हमारा मन रूपी पात्र शुद्ध होना चाहिए। खुदा दोस्त से निस्वार्थ दोस्ती करने के लिए वफादार होना आवश्यक है। खुदा से मतलब की दोस्ती मत करो। भगवान को बच्चा बनाकर देखों वह आपकी जायदाद में हिस्सा नहीं मांगेगा। इन सबसे मन से शक्ति बढ़ेगी। जिसे मेडिटेशन द्वारा अभ्यास कराया गया।
मेडिटेशन क ी अवस्थाओं के बारे में आपने बताते हुए कहा कि आध्यात्मिक ज्ञान द्वारा मन को श्रेष्ठ विचारों का मनन चिंतन करना है। जिससे मन एकाग्र होकर शांति और शक्ति की अनुभूति करता है।
समुद्र मंथन में वर्णित देव अच्छे विचारों का और असुर बुरे विचारों का प्रतिक है। समुद्र मंथन में सबसे पहले विष निकला अर्थात मेडिटेशन की प्रारंभिक स्टेज में हमारे भीतर से बुरे विचार निकलते है जिसे भक्ति में अक धतुरे के रूप में शिव जी पर अर्पित करते है।फिर अमृत कलष लिए श्री लक्ष्मी जी प्रकट होती है अर्थात निरंतर मेडिटेशन से मन रूपी सागर से श्री लक्ष्मी रूपी श्रेष्ठ संपनता हमारे जीवन में लक्षणों के रूप प्रत्यक्ष होती जाती है। इसलिए मन की तुलना सागर से भी करते है क्योंकि सागर जैसे मन में भी संकल्पों का तूफान आता है, जिसमें घबराना नहीं है क्योंकि मन रूपी बच्चा बिगड़ा है तो मेडिटेशन से सुधरने में वक्त तो लगेगा।
होम वर्क के रूप में सभी को अपने मन की बात पत्र के रूप में खुदा दोस्त को लिखने के लिए दिया गया।

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