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धमधागढ़ की विरासत से परिचित हुए देवसंस्कृति के विद्यार्थी

Apr 2, 2022
DSCET students Visit Dhamdha Garh

खपरी, दुर्ग। देवसंस्कृति कालेज ऑफ एजुकेशन एंड टेक्नोलॉजी के विद्यार्थियों ने धमधागढ़ की प्राचीन धरोहरों का अवलोकन किया। 126 तालाबों के इस गढ़ का वैभवशाली इतिहास यहां के महामाया मंदिर में संरक्षित है। यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां महाकाली, लक्ष्मी एवं सरस्वती की प्रतिमाएं एक साथ स्थापित हैं। मंदिर के पीछे धमधागढ़ का प्राचीन किला जीर्णशीर्ण अवस्था में मौजूद है।
शिक्षक प्रभारी वाणिज्य संकाय की सहायक प्राध्यापक आफरीन एवं टूर गाइड दीपक रंजन दास के मार्गदर्शन में विद्यार्थी दीपिका मंडावी, स्वाति शुक्ला, खुशबू साहू, ज्योति साहू, दीक्षा यादव, इस्मिता पटले एवं कुलेश्वरी सोरी इस भ्रमण कार्यक्रम में शामिल हुए।
मंदिर समिति के सचिव पप्पू ताम्रकार ने धमधागढ़ के प्राचीन इतिहास की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि यहां गोंड़ शासकों का लंबे समय तक राज रहा है। 1138 में रतनपुर के शासक पृथ्वीदेव के सेनापति जगतपाल ने यहां अपनी राजधानी स्थापित की थी। सांड़खदेव यहां के पहले शासक हुए जिन्होंने 80 वर्षों तक राज किया। महामाया मंदिर की स्थापना यहां के दसवें शासक दशवंत सिंह की माता ने किया था। 13वें और अंतिम शासक भवानी सिंह हुए। धमधागढ़ चारों तरफ खाई से सुरक्षित तथा अभेद्य था। किले तक पहुंचने के लिए नाव का इस्तेमाल करना पड़ता था। सन् 1800 में मराठा शासकों ने इस किले पर कब्जा कर लिया।
भ्रमण दल ने प्राचीन किला, मंदिर, दशावतार की प्रतिमाएं, कलचुरी कालीन मूर्तियों के भग्नावशेष तथा धमधा के तालाबों का अवलोकन किया।

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