महासमुन्द। वह सभी काम अपने पैरों से करती है। रसोई के सारे काम करने के अलावा वह पैरों से लिखती भी है। मोबाइल चलाने में भी उसे कोई परेशानी नहीं होती। अब वह 30 साल की है। हाल ही में उसने प्रौढ़ शिक्षा की महापरीक्षा में कामयाबी हासिल कर सबको चौंका दिया। वह उन सभी के लिए प्रेरणा स्रोत है जो हमेशा कुछ न कुछ न होने का रोना रोते रहते हैं।हम बात कर रहे हैं शांति बाई ठाकुर की। शांति का जन्म महासमुंद जिले के बागबाहरा स्थित ग्राम दैहानीभाठा के एक गरीब परिवार में हुआ। जब उसका जन्म हुआ तो परिवार सदमे में चला गया। जिसने भी देखा अफसोस जताया। इस बच्ची के हाथ नहीं थे पर उसके चेहरे पर एक मुस्कान थी – मानो कह रही हो “तुम देखते जाओ, मैं क्या-क्या कर लेती हूं।” सामान्य बच्चे अपने हाथ और पैरों का इस्तेमाल करके जो कुछ भी करते, शांति केवल अपने पैरों से ही कर लेती। पर स्कूल भेजना किसी को सूझा ही नहीं। उसे अपना सारा कामकाज स्वयं करते देखकर लोग चकित रह जाते। नित्यकर्मों को स्वयं करने के अलावा वह घर के सभी कार्यों में हाथ बंटाती। रसोई में तो उसकी खास दिलचस्पी थी। पकाना-परोसना-खाना जैसे काम वह सहज कर लेती। उसके हाथ की रोटी, पूड़ी, सब्जी की बात ही कुछ और थी।
शांति के हाथ भले ही न हों पर वह गुणों की खान थी। समय आने पर उसका विवाह इन्दर ठाकुर से हुआ। इन्दर ठाकुर एक गरीब मजदूर था। इतना साहस केवल उन्हीं में होता है जिनके लिए जीवन ही एक चुनौती हो। उसने सहज भाव से शांति का हाथ थामा और दोनों की जिन्दगी आगे बढ़ गई। पर शांति कुछ और भी करना चाहती थी। उसे स्कूल नहीं जा पाने का मलाल था। जैसे ही मौका मिला वह प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम में शामिल हो गई। वह पैरों से ही लिखती। दिमाग तो तेज था ही। जल्द ही वह औरों से आगे निकल गई। जब उसने प्रौढ़ शिक्षार्थियों के लिए होने वाली महापरीक्षा में सफलता हासिल की तो जिला प्रशासन की नजर उसपर पड़ी।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल उसकी कहानी से बेहद प्रभावित हुए। मुख्यमंत्री के निर्देश पर कलेक्टर निलेश कुमार क्षीरसागर ने शांति बाई से मुलाकात की। उन्होंने मुक्तकंठ से शांति के जज्बे को सलाम किया और ढेर सारी बातें कीं। कलेक्टर ने शांति को कुछ पुस्तकें उपहार में दीं। शांति को विकलांगता पेंशन प्राप्त होता है। कलेक्टर की पहल पर शांति-इन्दर को अंत्योदय राशन कार्ड मिल गया। कलेक्टर ने इस दंपति को सरकारी आवास उपलब्ध कराने के भी निर्देश दिए।