संबित पात्रा का जन्म एक इस्पात कर्मचारी परिवार में हुआ. उनके पिता बोकारो स्टील प्लांट में सेवारत थे. उन्होंने सरकारी मेडिकल कालेज से एमबीबीएस और एमएस किया अर्थात देश ने उनकी शिक्षा का भार उठाया. 2003 में उन्होंने बतौर चिकित्सक अपना करियर शुरू किया और 10 साल में ही उसे तिलांजलि दे दी. नामालूम कारणों से वे 2014 से भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं. सरकारी खर्च पर मेडिकल की पढ़ाई करने और फिर उसे तिलांजलि देने का यह लाभ उन्हें अवश्य हुआ कि 2017 में उन्हें ओएनजीसी के बार्ड पर स्वतंत्र निदेशक बना दिया गया. 2021 से वे पर्यटन विकास निगम के चेयरमैन हैं. न वो बोकारो (सार्वजनिक उपक्रम) के हुए, न राज्य की सेवा कर पाए, सरकारी मेडिकल कालेज की सीट खराब की और अब उन पदों पर है जिनके लिए न तो उनमें योग्यता है और न अनुभव. ऐसे डाक्टरों को पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे डॉ बिधान चंद्र राय से सीख लेनी चाहिए जिन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए भी चिकित्सक की जिम्मेदारी का निर्वहन किया. चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवा को बढ़ाने का काम किया. जब अपने पेशे के प्रति बेईमान ऐसा आदमी छत्तीसगढ़ सरकार के खिलाफ 104 पन्नों का आरोप पत्र लेकर आता है और कहता है कि इतना बड़ा स्टेपलर नहीं मिला कि इसे स्टेपल किया जा सके तो सिर्फ हंसी आती है. बेचारे को यह भी नहीं पता कि पन्ने ज्यादा हों तो उन्हें नस्ती डोरी से बांधा जाता है, फाइल कवर में लगाया जाता है. उनके खाते में तीन उपलब्धियां और हैं जिनमें से दो राजनीतिक हैं. उन्होंने पहला चुनाव दिल्ली के कश्मीरी गेट से नगर निगम का चुनाव हारा और फिर 2019 में अपनी जन्मभूमि पुरी से लोकसभा का चुनाव हार गए. तीसरी उपलब्धि है चिकित्सा में लापरवाही का वह आरोप जिसकी दिल्ली मेडिकल बोर्ड जांच कर रही है.