नफरत कभी भी किसी समस्या का स्थायी हल नहीं हो सकता. हिंसा से हिंसा नहीं रोकी जा सकती. आंख के बदले आंख- बर्बरता और जहालत की निशानी है. ऐसे इलाज से केवल अंधों के गांव बसाए जा सकते हैं. जिन लोगों की अहिंसा में आस्था है उनके लिए एक अच्छी खबर है. ग्रामीण क्षेत्रों में पनपते अंधविश्वास और झाड़-फूंक की परम्परा के लिए आम तौर पर बैगा-गुनिया और ओझाओं को दोषी ठहराया जाता रहा है. अब तक सरकारें इनपर डंडा ही चलाती रही है. इसका नतीजा यह निकला कि शहरी आबादी भी झाड़-फूंक और तंत्र मंत्र पर भरोसा करने लगी. टखनों में काला धागा और कलाइयों पर नजरबट्टू बांधना अब फैशन का हिस्सा बन गया है. पर छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार ने गांधीजी का नुस्खा अपनाया. बैगा-गुनिया और झाड़-फूंक करने वालों को समाज का हिस्सा माना. परिवर्तन के लिए इन्हें साधन के रूप में विकसित किया. इन्हें आधुनिक चिकित्सा शास्त्र के बारे में बताया गया. नाना प्रकार की बीमारियों की पहचान कराई गई. लक्षणों से रोग की गंभीरता की पहचान बताई गई. सर्पदंश के मामलों में त्वरित इलाज के नतीजे दिखाए गए. अब बैगा-गुनिया जानते हैं कि झाड़फूंक से केवल वही पीड़ित ठीक होते हैं जिन्हें विषहीन सांपों ने काटा होता है. बैगा-गुनिया-ओझा भी इंसान हैं. खामख्वाह किसी की जान लेने का शौक उन्हें भी नहीं है. वे अपनी जानकारी के अनुसार पीड़ित की मदद करने की ही कोशिश करते थे. अब जबकि उनके ज्ञान के स्तर में वृद्धि हुई है तो वे भी सरकार का हाथ बंटा रहे हैं. सर्पदंश के मरीज को जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचाने में मदद कर रहे हैं. लक्षणों के आधार पर अन्य मरीजों को भी सीधे अस्पताल ले जाने की सलाह दे रहे हैं. छत्तीसगढ़ के नागलोक जशपुर क्षेत्र के दो बैगाओं का जिला कलेक्टर डॉ रवि मित्तल ने सम्मान किया. जशपुर के नरेश पांडा और बगीचा के प्रसाद यादव का सम्मान करते हुए उन्होंने इस जागरूकता को आगे बढ़ाने की अपील की. इन बाबाओं ने कहा कि वे शासन का तो सहयोग करेंगे ही, अपने स्तर पर भी इस दिशा में प्रयास जारी रखेंगे. जशपुर के लिए यह मामला इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि यह सम्पूर्ण क्षेत्र विभिन्न प्रजाति के सर्पों के लिए विख्यात है. कहा जाता है कि बारिश की पहली बूंदों के साथ ही यहां तरह-तरह के सर्प दिखाई देने लगते हैं. जनजीवन खतरे में आ जाता है. इसलिए सर्पदंश की झाड़फूंक करने वालों की भी यहां अच्छी खासी संख्या है. वैसे बता दें कि बैगाओं को विश्वास में लेकर उन्हें आधुनिक चिकित्सा सेवा प्रदायगी का हिस्सा बनाने की यह कोशिश छत्तीसगढ़ के अनेक जिलों में की जा रही है. स्वयं चिकित्सा विभाग इस दिशा में पहल कर रहा है. बैगा-गुनिया सम्मेलनों का आयोजन किया जा रहा है. समाज में उनकी भूमिका को स्वीकार कर उनका विश्वास जीता जा रहा है. इसके सुखद नतीजे सामने आने लगे हैं.