छत्तीसगढ़ कांग्रेस में उप मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव के एक बयान को लेकर बवाल मचा हुआ है. सिंहदेव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ मंच साझा कर रहे थे. जब प्रधानमंत्री ने कहा कि केन्द्र ने छत्तीसगढ़ को विकास कार्यों के लिए करोड़ों रुपए दिए तो सिंहदेव ने एक अच्छे मेजबान की तरह इसका समर्थन किया. जुमलों की राजनीति करने वाले कहां चूकते हैं. प्रधानमंत्री ने इसके बाद सिंहदेव की इस टिप्पणी का अपने हक में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. उन्होंने कहा कि हमने करोड़ों रुपए दिये, यह हम नहीं कह रहे. छत्तीसगढ़ के उप मुख्यमंत्री कह रहे. इस बात के दो मायने हैं. पहला तो यह कि भाजपा अब भी मुख्यमंत्री भूपेश और उपमुख्यमंत्री सिंहदेव के बीच की खींचतान के प्रति आशावान है. वह असंतोष को हवा देकर दरार पैदा करना चाहती है. दूसरा यह कि वह भोली-भाली जनता को करोड़ों रुपए का झांसा देना चाहती है. जहां तक केन्द्र द्वारा राज्यों को पैसा देने का सवाल है, केन्द्र यह पैसा कोई अपने घर से नहीं देता. पैसा देकर केन्द्र राज्यों पर कोई अहसान नहीं करता. केन्द्र के पास अपना कहने के लिए कुछ भी नहीं है. उसके पास जो कुछ भी है वह राज्यों का है. उसका सारा पैसा राज्यों से आता है. पहले जहां वह केवल अपने हिस्से के कर पर निर्भर था वहीं अब खदान और जंगलों पर भी उसने अपना आधिपत्य जमा लिया है. जब अरबों की वसूली करोगे तो करोड़ों तो देने ही पड़ेंगे. गाय का दूध निकालने के लिए उसे चारा तो खिलाना ही पड़ता है. ऊपर से छत्तीसगढ़ में तो स्थिति पहले ही बिगड़ी हुई है. लगभग पांच साल पहले यहां से उसकी सरकार की विदाई हो गई थी. पूरे 15 साल राज करने के बाद भाजपा की सरकार को हाशिए पर जाना पड़ा था. यह स्थिति तब जब 2014 के बाद केन्द्र और राज्य में डबल इंजन की सरकार थी. केन्द्र ने करोड़ों रुपए तो तब भी दिये होंगे. क्या हुआ उन पैसों का? किसके खाते में डाला था सरकार ने वह पैसा? बल्कि इससे अच्छी स्थिति तो रमन सरकार की तब थी जब केन्द्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी. वह लगातार दो चुनाव जीत चुकी थी. उस लगातार जीत की सेटिंग से छत्तीसगढ़ वाकिफ है. केन्द्र में मोदी सरकार के आते ही ऐसा क्या हुआ कि छत्तीसगढ़ से भाजपा की विदाई हो गई? दरअसल, हर गांव में एक ठाकुर होता है. सामने पड़ जाने पर लोग उनके पांव-लागी भी करते हैं. पर दिल से बहुत कम लोग ठाकुरों की इज्जत कर पाते हैं. ठाकुर को मनमानी करने की आदत होती है. ठाकुर अच्छा हुआ तो गांव में खुशहाली होती है. ठाकुर बुरा हुआ तो गांव वालों के लिए जीवन एक दुःस्वप्न की तरह हो जाता है. गांव वालों को यह समझ में नहीं आता कि वह फसल को बचाए या बहू-बेटियों की सुरक्षा का प्रबंध करे.