राजधानी के एक गौठान में लगभग आधा दर्जन गायों की मौत हो गई. पशु चिकित्सकों ने इस स्थल को मवेशियों के रहने के लिए अनुपयुक्त बताया. इसके बाद गायों को यहां से शिफ्ट कर दिया गया. पिछले कुछ दिनों की बारिश के बाद अधिकांश गौठानों का यही हाल है. गौठान ही क्यों, निचली बस्तियां भी इंसानों के रहने लायक नहीं रह गई हैं. बढ़ी हुई नमी, कीचड़ और दूषित जल के कारण लोगों का जीना मुहाल है. गौठानों, गौशालाओं और कांजी हाउसों में गायों की मौत का यह कोई पहला मामला नहीं है. थोड़े दिनों तक हंगामा होता रहता है और फिर मामला झाग की तरह बैठ जाता है. इसे पशुओं के प्रति क्रूरता कहा जा सकता है पर जिस समाज में इंसानों की ही किसी को परवाह नहीं, वहां मवेशियों की चिंता कोई करे भी तो क्यों, और कैसे? गौसेवा के नाम पर लोग गेट पर खड़ी गाय को एक-दो रोटी खिलाकर कर्त्तव्यों की इतिश्री कर लेते हैं. गौ प्रेम भाषण और स्लोगन तक सीमित है. नाराजगी जाहिर करने और आरोप प्रत्यारोप की झड़ी से गाय का कोई भला नहीं होता. मौसम अगर सुन्दर-सुरक्षित घरों में रहकर चार टाइम पौष्टिक भोजन करने वालों को बीमार कर सकता है तो शेड के नीचे कीचड़ से सने मवेशी तो बीमार पड़ ही सकते हैं. जीवन है तो मृत्यु भी है. घरों में, अस्पतालों में प्रतिदिन, प्रत्येक शहर में दर्जनों मौतें होती हैं. इसी तरह शहरों में, गांवों में मवेशियों की भी मौतें होती हैं. शहर के दस कोनों में अगर दस मवेशियों की मौत हो जाए तो वह खबर नहीं बनती. पर इन आवारा पशुओं को यदि एक स्थान पर इकट्ठा कर दिया जाए और उनकी मृत्यु वहीं तो ये आंकड़े बन जाते हैं. गौठान, गौशाला और कांजी हाउस ऐसी ही जगहें हैं जहां आवारा और अनुपयोगी पशु रखे जाते हैं. इनमें बूढ़े और बीमार मवेशी भी होते हैं. कुछ उम्र पूरी करने के कारण तो कुछ बीमारी के कारण दम तोड़ देते हैं. इसपर राजनीति नहीं होनी चाहिए. हैरानी तो इस बात पर होती है कि गाय पर गाहे-बगाहे हंगामा खड़ा करने वाले कभी इंसानों की गौशालाओं पर कुछ नहीं बोलते. शहरी क्षेत्रों में जगह-जगह वृद्धाश्रम खुल रहे हैं. पहले शासन इन आश्रमों का सहयोग करता था पर अब उसने भी हाथ खींच लिया है. ऐसे आश्रमों के संचालक इधर-उधर से मांग कर उन बुजुर्गों की जरूरतों को पूरा करने की कोशिश करते हैं, जिनके अपनों ने उन्हें सड़कों पर छोड़ दिया है. अकेले ट्विन सिटी की ही बात करें तो पुलगांव के सरकारी वृद्धाश्रम के अलावा शांतिनगर का मदर टेरेसा आश्रम, सेक्टर-2 और सेक्टर-8 का आस्था वृद्धाश्रम, सेक्टर-3 का फील परमार्थम ऐसे ही स्थान हैं जहां इंसान लावारिसों का जीवन जी रहे हैं. बुजुर्गों को उनके हाल पर छोड़ने वालों के लिए अच्छा यही होगा कि वे गायों को भी उनके हाल पर छोड़ दें.