भिलाई। ‘नानी बाई रो मायरो’ के अंतिम दिन जब व्यासगद्दी से श्रीजया किशोरी ने मां की ममता, उसकी सेवा और त्याग का वर्णन किया तो लोगों की आंखों से आंसू झर-झर बहने लगे। उनकी वाणी में इतनी करुणा उतर आई थी कि लोगों को बरबस अपनी मां याद आ गई। पंडाल में बैठी महिलाओं की आंखें जहां बरबस गीली हो गईं वहीं कुछ लोगों के फफक कर रोने की आवाजें भी आती रहीं। पुरुषों को भी रूमाल के कोर से आंसू पोंछते देखा गया। [More]
कथा व्यास ने कहा कि एक मां ही है जो हर रूप में अपनी संतान की सेवा करती है। वह उसके लिए धाई बनती है, मेहत्तर बनती है, धोबी बनती है, रसोईया बनती है। वह स्वयं भूखी रहकर अपनी संतानों को खाना खिलाती है। वह उसकी पहली गुरू होती है। बच्चे को नींद न आए तो रात भर जागती है। बच्चे के मुस्कुराने पर मुस्कुराती है तो उसके रोने पर खुद आंसू बहाती है। गरीबी में, अभावों में भी वह अपनी संतानों को रोटी खिलाती है और पाल पोसकर बड़ा करती है। पर जब यही संतानें बड़ी हो जाती हैं, उनकी शादियां हो जाती हैं तो एक मां उनपर भारी पड़ती है। यह स्थिति तब है जब मां को अपने सम्पूर्ण जीवन काल के अंतिम कुछ वर्षों में ही सेवा की, मदद की जरूरत होती है। पर ऐसे समय में उनके बच्चे जब उनका हाथ पकड़कर उन्हें वृद्धाश्रम में छोड़ आते हैं तो ठाकुरजी का भी कलेजा फट जाता है। उन्होंने कहा कि ठाकुर जी ऐसे ही भक्तों से प्रेम करते हैं जो अपने माता-पिता की सेवा करते हैं।
एक प्रसंग का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि एक बार ठाकुरजी माता रुक्मणी के साथ अपने एक भक्त से मिलने गए। भक्त उस समय अपनी मां के पांव दबा रहा था। ठाकुर जी के आने की आहट सुनकर उसने उन्हें बाहर ही रुकने के लिए कहा। उसने इशारों से ही समझाया कि मां को सुला रहा है। जब मां सो जाए तो वह उन्हें बुलाएगा। माता रुक्मणी को यह बात अच्छी नहीं लगती। वह श्रीकृष्ण से कहती हैं कि यह कैसा भक्त है कि ठाकुरजी स्वयं मिलने आए हैं और वह उन्हें इंतजार करने के लिए कह रहा है। तब ठाकुरजी कहते हैं कि वह अपनी मां की सेवा कर रहा है जो मुझे मिल रहा है। माता-पिता की सेवा ही मेरी सच्ची सेवा है। ठाकुरजी आज भी इस भक्त के दरवाजे पर खड़े उसकी अनुमति का इंतजार कर रहे हैं।