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अच्छा स्कूल घटिया स्कूल

May 23, 2015

private schools, gustaakhi maafबाहर पारा 45 डिग्री था तो भीतर कुछ कम नहीं था। उलटे यहां तो तंदूर जैसे हालात थे। भीतर की आंच बाहर से पता ही नहीं लगती थी। टॉपिक था कौन सा स्कूल सबसे अच्छा है और किस स्कूल में बच्चे का दाखिला कराया जाना चाहिए। बीएसपी स्कूल, डीपीएस, केपीएस को लेकर प्रवचन हो रहे थे। बीच बीच में डीएवी और एमजीएम का भी नाम आता जा रहा था। जैसा कि आम होता है किसी एक टीचर या एक स्टूडेन्ट को लेकर स्कूल की रेटिंग तय की जा रही थी। कहां की लड़की किसी दूसरे लड़के के साथ भाग गई। Read moreकहां स्कूल में हुई मारपीट में एक बच्चे की जान चली गई। कहां का प्रिंसिपल पहले किसी और शहर में था जहां से पीट कर भगाया गया था जैसे मुद्दों पर गरमागरम बहस हो रही थी। आग में घी डालने के लिए कुछ नारद मुनि भी हाजिर थे। वे बीच बीच में कुछ ऐसे किस्सों को जोड़ते जा रहे थे जिनका न कोई सिर था न पैर। पर बहस थी कि बिना रुके चली जा रही थी। एक विराम लेता तो दूसरा बोलने लगता। एक स्कूल पर आरोप था कि वहां भेड़ बकरियों की तरह बच्चों को ठूंस लिया गया है। खुद स्कूल को नहीं पता रहता कि स्कूल के भीतर बच्चे क्या कर रहे हैं। ऐसे स्कूल में बच्चे को भेजने से उसका बिगड़ना तय है। फिर बात यह भी उठी कि जिस स्कूल में होस्टल वाले बच्चों की संख्या ज्यादा हो वहां के बच्चे बिगड़ जाते हैं। वे सब बिना मां-बाप के बच्चों की तरह भटकते रहते हैं। इसी तरह भटकते हुए उनके पांव फिसलते हैं और फिर वे नेतागिरी-मारामारी में मजा लेने लगते हैं। बहरहाल एक सज्जन ऐसे भी थे जो इन स्कूलों की बुराइयों की बजाए उनकी खूबियों को देख रहे थे। झगड़ा इसी बात का था कि वे उलटी बात कह रहे थे। उन्होंने कहा कि देश की आबादी लगातार बढ़ रही है। सरकारी स्कूल या तो नाकाफी हैं या फिर वहां अंग्रेजी माध्यम नहीं है। ऐसे में अंग्रेजी स्कूल निजी क्षेत्र में ही खुलेंगे। स्कूलों की अधोसंरचना बढ़ेगी तो बच्चों की संख्या भी बढ़ेगी। इसपर आपत्ति का कोई अर्थ नहीं है। छोटे शहरों के स्कूलों से इनकी तुलना नहीं की जा सकती है। छोटे शहरों में आम तौर पर मां गृहिणी होती है। बड़े शहरों में तो अपने परिवार के साथ रहने वाले बच्चे भी दिन भर अकेले होते हैं। और फिर बच्चों को हायर सेकंडरी के बाद उच्च शिक्षा के लिए घर छोड़ना ही है। फिर वे इसके लिए यदि अभी से तैयार हो रहे हैं तो इसमें कोई बुराई नहीं है। पर उनकी कोई सुनता ही नहीं था। अंत में झल्लाकर उन्होंने पूछ ही लिया – ‘आखिर कौन सा स्कूल सबसे अच्छा है?’ उत्तर मिला – ‘बीएसपी सीनियर सेकण्डरी पर वहां सब्जेक्ट नहीं मिला। डीपीएस का खर्चा नहीं उठा पाएंगे। एमजीएम में एडमिशन नहीं मिला।’
 गुस्ताखी माफ! ‘तब तो ठीक ही है। कमजोर बच्चा – घटिया स्कूल। किसी और को दोष क्या देना।’

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