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देवी लक्ष्मी के रूप में पूजी जाती हैं मां दंतेश्वरी : 800 साल से चली आ रही है परंपरा

Oct 17, 2017
Danteshwari Ma is also worshippped as Godess Laxmiदंतेवाड़ा। कार्तिक अमावस्या की रात देवी लक्ष्मी की पूजा सभी घर और मंदिरों में होती है पर दंतेवाड़ा शक्तिपीठ में 9 दिन पहले ही लक्ष्मी पूजन शुरु हो जाती है। देवी दंतेश्वरी की भी लक्ष्मी के रूप में पूजा करते हैं। यह अनूठी परंपरा यहां 800 साल से चली आ रही है। दीपावली के पूर्व ही माई दंतेश्वरी के पूजा तुलसीपानी विधान से होती है। पुजारी प्रतिदिन ब्रम्हमुहूर्त में डंकनी-शंकनी में स्नान के बाद पूजा-विधान संपन्न् करते हैं। नवरात्र पर माईजी को दुर्गा के 9 रुपों में आराधना करते हैं तो धनतरेस से 9 पहले देवी लक्ष्मी स्वरूप में पूजा होता है।

एक ही शिला पर देवी लक्ष्मी और माता दुर्गा
दंतेश्वरी मंदिर में गर्भगृह से पहले महामंडप में अन्य प्रतिमाओं के साथ एक शिला पर गजलक्ष्मी और दुर्गा माता की प्रतिमा है। यह प्रतिमा दो अलग-अलग या एक अगल-बगल में नहीं। बल्कि एक ही सिक्के दो पहलू की तरह एक ही पत्थर में आगे-पीछे उकेरी गई है। यह दुलर्भ प्रतिमा की दीवाली और नवरात्र में विशेष पूजा होती है।
जड़ी-बूटियां से तैयार काढ़ा भी चढ़ाया जाता है
देवी दंतेश्वरी मंदिर में दीवाली के पहले से पूजा शुरू हो जाती है। लक्ष्मी पूजा की पूर्व संध्या पर मंदिर में सेवा देने वाले काढा तैयार करने जंगल से तेजराज कदंब की छाल, छिंद का कंद और अन्य दर्जनों जडी बूटियां जाती हैं, जिसे पारंपरिक रायगिडी वाद्य की गूंज के साथ मंदिर तक पहुंचाया जाता है।
दीपावली की पूर्व संध्या पर तुलसीपानी पूजन के दौरान सर्वऔषधि लाने मंदिर के पुजारी व सेवादार जयस्तंभ चौक तक जाते हैं। सर्वऔषधि से काढा तैयार करने के लिए सेवादार दंतेश्वरी सरोवर से जडी-बूटी लेकर लौटते हैं, फिर मंदिर के भोगसागर में काढा तैयार किया जाता है, जिससे लक्ष्मी पूजन की सुबह ब्रम्ह मुहूर्त में देवी को स्नान करवाया जाता है।
मंदिर के मुख्य द्वार में गरूड़ स्तंभ
मंदिर के पुजारी लोकेंद्रनाथ जिया बताते हैं कि मंदिर में माईजी दुर्गा माता के साथ देवी नारायणी के स्वरूप में विराजित है। इसलिए मंदिर प्रांगण में गरूड़ स्तंभ है और गणेश, सरस्वती की प्रतिमाएं हैं। यह अन्य देवी मंदिरों में देखने को नहीं मिलता। पुजारी लोकेंद्र नाथ बताते हैं कि पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु कार्तिक माह में मत्स्य स्वरूप में रहते हैं।
कार्तिक माह में ही उन्होंने जलंधर का वध करने उसकी पत्नी तुलसी का पतिव्रत धर्म भंग किया था। इसके बाद से तुलसी को भगवान विष्णु की पत्नी के रूप में पूजा करने का वर दिया था। तब से ऐसी परंपरा चली आ रही है और दंतेवाड़ा में माईजी की पूजा कार्तिक मास में धनतेरस के 9 पहले से विशेष पूजा होती है।
वे बताते हैं पुजारी ब्रम्ह मुहूर्त में डंकनी-शंकनी में स्नान करने के बाद माईजी की प्रतिमा को जड़ी-बूटी के लेप और तुलसी पानी के साथ स्नान, श्रृंगार कर पूजा करते हैं। यह परंपरा 800 साल से पुरानी है।
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