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बहुत वैज्ञानिक है छत्तीसगढ़ में दाहसंस्कार की विधि

Apr 3, 2018

बहुत वैज्ञानिक है छत्तीसगढ़ में दाहसंस्कार की विधिभिलाई। आजादी के बाद के 70 सालों में बहुत कुछ तेजी से बदला। इन्हीं में से एक है हमारी जनसंख्या। 1947 में हमारी जनसंख्या लगभग 30 करोड़ थी जो आज 130 करोड़ हैं। जब हम 30 करोड़ थे तो जंगल बहुत थे। आज जब हम 130 करोड़ हैं तो जंगल विरल हो चुके हैं। ऐसे में दाहसंस्कार में लकडिय़ों का उपयोग मुझे चिंता में डाल देता था। पर आज दाह संस्कार की छत्तीसगढ़ी विधि देखी तो चिंता काफी हद तक दूर हो गई।बहुत वैज्ञानिक है छत्तीसगढ़ में दाहसंस्कार की विधिअपने एक अजीज मित्र की अंत्येष्टि में आज सेलूद जाना हुआ। वहां मैंने पहली बार कण्डे से दाह संस्कार की विधि देखी। पहले मिट्टी खोदकर एक आदमकद गड्ढा तैयार किया गया। इसमें गोबर के कण्डे बिछाए गए। उनपर थोड़ी सी लकडिय़ां बिछा दी गईं। उसके ऊपर शव रखकर पुन: कण्डे डाल दिए गए। खाली पड़ी जगहों को पैरा से ढंक दिया। ऊपर से फूस डाल दी गई। मिट्टी के घड़े में पानी लेकर शव की परिक्रमा की गई। इसके बाद हाथों को पीछे कर उसमें सुलगता कण्डा लेकर शव की पुन: परिक्रमा की गई और फिर कण्डे से ही चिता को अग्नि दी गई।
चिता भट्टी जैसी हो गई जिससे केवल धुआं ही बाहर आता रहा। कभी कभी थोड़ी लपटें इधर उधर से बाहर आ जातीं। यह एक तरह की भट्टी (ओवन) बन चुकी थी जिसमें ताप भीतर ही कैद थी। न तो राख उड़ रही थी और न ही लपटें व्यर्थ जा रही थीं। समय भी लगभग उतना ही लगा। है न वैज्ञानिक तरीका?
यदि दाह संस्कार की यही विधी पूरे देश में अपनाई जाए तो लकड़ी की बचत होगी। गोबर के उपलों/कण्डों की मांग बढ़ेगी। गोबर की मांग बढ़ेगी तो बूढ़ी गायों और बैलों की भी उपयोगिता बनी रहेगी।

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