एमजे कालेज ऑफ़ फार्मेसी में जन औषधि केन्द्र पर व्याख्यान
भिलाई। पिछले दो सालों में प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि केन्द्रों की संख्या 90 से बढ़कर 5900 हो चुकी हैं। यहां मिलने वाली जेनेरिक दवा ब्रांडेड के समान गुणवत्ता की होती हैं पर कीमत में 40 से 90 फीसद तक सस्ती होती हैं। ब्यूरो ऑफ़ फार्मा पब्लिक सेक्टर अंडरटेंकिंग्स ऑफ़ इंडिया के डिप्टी मैनेजर मार्केटिंग अनीष वोडीटेलवर ने उक्त जानकारी आज एमजे कालेज ऑफ़ फार्मेसी में आयोजित व्याख्यान में दी। उन्होंने बताया कि फार्मेसी लाइसेंस वाला कोई भी व्यक्ति विभाग की वेबसाइट पर जाकर अधिक जानकारी हासिल कर सकता है और जन औषधि केन्द्र खोल सकता है। इसमें सरकार की तरफ से 2.5 लाख रुपए तक का सहयोग किया जाता है।श्री अनीष ने विभिन्न दवा कम्पनियों की मार्केटिंग पॉलिसी का जिक्र करते हुए कहा कि बड़ी नामी कंपनियां भी अपने ब्रांड/प्रॉडक्ट नेम में मामूली फेरबदल कर सस्ती दवाइयां बेचती हैं। इन दवाओं में एमआरपी पर डिस्काउंट दिया जाता है। उन्होंने बताया कि महंगी दवाइयां आम आदमी की पहुंच से बाहर होती हैं। घर में एक व्यक्ति का बीमार पड़ना या फिर कोई लंबी चलने वाली बीमारी का होना पूरे परिवार को आर्थिक संकट में डाल देता है। इसलिए सरकार ने दवाओं की मार्केटिंग पर होने वाले खर्च को अलग कर उन्हें सस्ते में जन औषधि केन्द्रों में मुहैया कराया। जन औषधि केन्द्र तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं जिसका प्रमाण उनकी बढ़ती हुई संख्या है।
एमजे कालेज ऑफ़ फार्मेसी के प्राचार्य डॉ टी कुमार, एमजे कालेज के प्रभारी प्राचार्य डॉ अनिल चौबे, शिक्षा संकाय की अध्यक्ष डॉ श्वेता भाटिया भी मंचासीन थीं। इस अवसर पर फार्मेसी के स्टूडेन्ट्स के साथ ही अन्य विभागों के प्राध्यापक तथा अन्य स्टाफ मौजूद था।