दुर्ग। अविश एडुकॉम द्वारा अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर अपने-अपने क्षेत्र में सफलता का परचम लहराने वाली महिलाओं को सम्मानित किया। इन महिलाओं ने अपने संघर्ष की कहानी साझा करते हुए कहा कि अपने लक्ष्य को साधने के लिए पूर्ण प्रतिबद्धता के साथ काम करें। आयोजन की मुख्य वक्ता टेड-स्पीकर मिसेज यूनिवर्स लवली शिल्पा अग्रवाल ने कहा कि कठिन कार्यों पर अधिकार जमाने के लिए केवल हजार घंटों की आवश्यकता होती है। शिल्पा अग्रवाल ने बताया कि वह विज्ञान की अच्छी छात्रा थी। बिना किसी ट्यूशन के 83 फीसदी अंकों के साथ 12वीं उत्तीर्ण किया। इच्छा डाक्टर बनने की थी पर घरवालों ने शादी करा दी। तब उनकी आयु महज साढ़े अठारह वर्ष थी। एक साल में गोद भर गई। सास से बिल्कुल भी पटरी नहीं बैठती थी। उन्होंने अपने जीवन की सबसे बड़ी गलती तब की जब बेटा दो साल का हो गया। रोज रोज की किचकिच से तंग आकर उन्होंने नींद की गोलियां खाकर जान देने की कोशिश की। यह खुदगर्जी थी। अस्पताल में पड़े-पड़े उन्होंने खूब सोचा और वहां से एक नई शिल्पा का जन्म हो गया।
पलायन का मार्ग छोड़कर उसने संघर्ष की ठानी। पति ने साथ दिया। परिवार का फर्नीचर व्यवसाय था। वहां घाटा लग रहा था। बंटवारा हो रहा था। तब उन्होंने पति का हाथ बंटाया। फिर सेल्स में आगे आई। सेल्स बढ़ी तो लोगों ने तरह-तरह के आरोप लगाए। वह घंटों रोती पर फिर उनकी ओर ध्यान देना बंद कर दिया। देखते ही देखते सफलता उनके कदम चूमने लगी। व्यवसाय बढ़ा। सेल्स के साथ साथ अकाउंट्स, बैंक आदि के काम में दक्ष हो गई। उद्यमी जगत में पूछपरख भी हुई। ऐसे समय में पति ने बिना बताए मिसेज यूनिवर्स स्पर्धा के लिए नाम लिखा दिया। उन दिनों उनका वजन काफी था। जिम में जाकर 25 दिन में 12 किलो वजन कम किया। मिसेज यूनिवर्स लवली का ताज जीता। फिर टेड स्पीकर बन गई।
शिल्पा ने कहा कि कोई भी कार्य कठिन नहीं होता। यदि आप पूरे लगन और निष्ठा से उसे जीतने का प्रयास करें तो सफलता निश्चित ही मिलती है। इसके लिए ज्यादा से ज्यादा एक हजार घंटे देने की जरूरत पड़ती है।
भारतीय महिला हाकी टीम की पूर्व कप्तान डीएसपी सबा अंजुम ने इससे पूर्व अपने संघर्ष की दास्तान सुनाई। उन्होंने कहा कि वे बेहद गरीब परिवार से थीं। हॉकी का शौक था। लगातार खेलती रही। इंडिया टीम में जगह मिली तो नए लक्ष्य बने। लक्ष्य कठिन थे पर उन्होंने पूरी शिद्दत के साथ मेहनत जारी रखी। पैरों में चोट लगी। कई जगहों पर स्क्रू लगाकर हड्डियों को जोड़ा गया। अंतरराष्ट्रीय हाकी में इसके बाद भी सफर जारी रहा। उन्होंने पैसा, घर, गाड़ी, शादी जैसा कोई लक्ष्य कभी रखा ही नहीं था। उनका लक्ष्य था भारतीय टीम की कप्तानी करना। एक दिन उनका सपना पूरा हो गया। तब जाकर उन्होंने सांस ली। अर्जुन अवार्ड मिला और फिर पुलिस ने सम्मान के साथ एक अच्छा पद दिया। हालांकि उन्हें रेलवे ने उन्हें काफी पहले ही नौकरी दे दी थी पर इस पद के साथ सम्मान जुड़ा था। उन्होंने पुलिस की सेवा स्वीकार कर ली और आज उनके पास वह सबकुछ है जिसके बारे में उन्होंने कभी सोचा नहीं था।
स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती महाविद्यालय की प्राचार्य एवं विदूषी कवि डॉ हंसा शुक्ला ने कहा कि भारतीय महिला को गौरवशाली अतीत रहा है। रामायण एवं महाभारत काल में नारी-पुरुष को समान अधिकार प्राप्त थे। जब विदेशी आक्रांता देश में आने लगे तब नारी की सुरक्षा के लिए पर्दा प्रथा, उन्हें घर के भीतर रखना, छोटी उम्र में ब्याह करा देना, आदि प्रारंभ हुआ। आज कोई विदेशी आक्रांता नहीं है पर संकटकालीन इन परम्पराओं को हम कुप्रथा की तरह ढो रहे हैं। आवश्यकता इससे बाहर निकलने की है। भारतीय नारी को उनका गौरवशाली अतीत लौटाने का है। उन्होंने कहा कि ऐसे मंचों पर उन महिलाओं को लाना चाहिए जो कुछ करना चाहती हैं और चुनौतियों का सामना कर रही हैं। सफल महिलाओं की भूमिका इसमें केवल मार्गदर्शक की होनी चाहिए।
स्ट्रेंथ ट्रेनर अंजु अम्बार्डे ने कहा कि वे पुरुष को प्रतिद्वंद्वी के रूप में नहीं देखतीं। प्रत्येक सफल महिला के पीछे स्त्री और पुरुष दोनों का हाथ होता है। यह हाथ पिता का, भाई का, पति का, किसी का भी हो सकता है। उन्होंने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि उन्हें भाई ने ही आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। पुरुषों के खेल स्ट्रेंथ ट्रेनिंग में उन्हें आगे बढ़ाया। उन्होंने इसमें राष्ट्रीय स्तर पर द्वितीय पुरस्कार जीता। आज वे स्ट्रेंथ ट्रेनर हैं। उन्होंने कहा कि प्रत्येक चुनौती का सामना पूरे दिल से करना चाहिए और अपनी क्षमता का हंड्रेड परसेंट देना चाहिए। सफलता मिलकर रहती है।
इस अवसर पर अविश एडुकॉम के संचालक नीलेश पारख एवं अतिथियों ने इन महिलाओं का स्मृति चिन्हों से सम्मान किया। न्यू प्रेस क्लब आॅफ भिलाई की अध्यक्ष भावना पाण्डेय सहित अन्यान्य अतिथियों ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया। अविश एडुकॉम के स्टूडेन्ट्स के लिए यह कार्यक्रम उपयोगी एवं प्रेरणास्पद रहा।