भिलाई। कभी इस्पात नगरी की शान रहा मैत्रीबाग धीरे-धीरे गुमनामी के अंधेरे में खो रहा है। योजनाओं का अभाव, कुप्रबंधन और विजन के अभाव में इसका खर्च तक नहीं निकल पा रहा है। एमजे कालेज के कॉमर्स एंड मैनेजमेन्ट स्टूडेन्ट्स ने शनिवार को ऐतिहासिक मैत्रीबाग का भ्रमण किया तथा तथ्य जुटाए। साथ ही इस खूबसूरत उद्यान के रिवाइवल और लोगों को आकर्षित करने की संभावनाओं का अध्ययन किया। वे अपनी रिपोर्ट भिलाई इस्पात संयंत्र को सौंपेंगे।महाविद्यालय की डायरेक्टर श्रीलेखा विरुलकर के निर्देश पर आयोजित इस भ्रमण कार्यक्रम का नेतृत्व वाणिज्य एवं प्रबंधन विभाग के प्रभारी सहा. प्राध्यापक आशीष सोनी तथा दीपक रंजन दास ने किया। दल में अभिषेक, साक्षी सिंह, यामिनी, अनीशा, सूर्या, डिलेश्वरी, रजत, ऋतिक, साहिल, नंदिनी, सुशांत, अनिल, विकास शामिल थे।
दल ने सबसे पहले उन महानुभावों के आवक्ष प्रतिमाओं का अवोलकन किया जिन्होंने भिलाई इस्पात संयंत्र की नींव रखी थी। इसके पीछे ही भिलाई का नाम पूरी दुनिया में रौशन करने वाली पद्मभूषण तीजनबाई के तंबूरे की विशाल लौह प्रतिकृति प्रदर्शित है। यहां स्थित टावर पर चढ़कर उन्होंने भिलाई इस्पात संयंत्र और उसका रिजरवायर देखा। इसके बाद वे चिड़ियाघर देखने चले गए।
मैत्रीबाग में कहीं भी सबके साथ बैठने की जगह नहीं थी। स्नैक स्टाल्स खाली पड़े थे। सायकल स्टैण्ड में दुपहिया वाहनों से चंद घंटों के 20 रुपए वसूले जा रहे थे जो अपने आप में एक रिकार्ड है। इससे कम 15 रुपए में तो चिड़ियाघर सहित पूरा मैत्रीबाग देखने की टिकट मिल रही थी।
मैत्रीबाग में स्टाफ की भारी कमी और इसके चलते गंदगी को आसानी से समझा जा सकता था। बेतरतीब हरियाली, गंदी पड़ी झीलें अपनी कहानी आप कह रही थीं। बच्चों ने पाया कि स्काउट रैली और फ्लावर शो के दौरान यहां जुटने वाली भीड़ का 10 फीसदी भी यहां वीकेण्ड्स पर नहीं आता।
इस भ्रमण की विषद रिपोर्ट तैयार करने के साथ ही बच्चे स्थिति में सुधार की संभावनाओं की पड़ताल करेंगे तथा अपनी रिपोर्ट भिलाई इस्पात संयंत्र प्रबंधन को सौंपेंगे।