संतोष रूंगटा कैम्पस में करियर मोटिवेशन वर्कशॉप ‘मार्गदर्शन’ में दिए टिप्स
भिलाई। लाइफ कोच एवं स्तंभकार एन रघुरामन का मानना है कि किसी भी क्षेत्र में सफल होने के लिए व्यक्ति का संवेदनशील होना जरूरी है। लोगों की जरूरतों को समझकर ही हम उनके लिए कुछ कर सकते हैं। यह बात सेवा, शोध, नवोन्मेष सभी क्षेत्रों में लागू होती है। श्री रघुरामन यहां संतोष रूंगटा समूह द्वारा स्कूली छात्र-छात्राओं के लिए आयोजित ‘मार्गदर्शन’ कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि दूसरों की जरूरतों के प्रति संवेदना ही विकास का मूलमंत्र है।रघुरामन ने अंग्रेजी सहित अन्य भाषाओं को सीखने के लिए बच्चों को प्रेरित करते हुए कहा कि विश्वपटल पर अपनी धाक जमाने के लिए यह जरूरी है। उन्होंने बिल्ली और कुत्ते की कहानी से इसकी मिसाल पेश की। उन्होंने बताया कि एक बार एक कुत्ता एक बिल्ली और उसके छौने को परेशान कर रहा था। कुत्ते से बचने के लिए भाग-भाग कर जब बिल्ली परेशान हो गई तो वह रुककर पलटी। उसने कुत्ते की आंख में आंख डालकर भौंकना शुरू कर दिया। कुत्ता कन्फ्यूज हो गया और बिल्ली सेफ हो गई। इसके बाद बिल्ली ने अपने छौने को भी दूसरों की बोली सीखने के लिए प्रेरित करते हुए कहा कि कभी-कभी दुश्मन को उसी की भाषा में समझाना पड़ता है।
उन्होंने कहा कि सभी में कोई न कोई विलक्षण प्रतिभा होती है। यदि व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार अपने पसंदीदा क्षेत्र में आगे बढ़ता है तो उसे असाधारण सफलता मिलती है। इस प्रतिभा को पहचानना टीचर और पेरेन्ट्स की जिम्मेदारी होती है। अपनी बात को एक स्पष्ट करने के लिए उन्होंने नागपुर में बिताए अपने स्कूली जीवन का एक किस्सा सुनाया। उन्होंने कहा कि उन दिनों छात्र अपनी जेब में कंचे लेकर स्कूल जाया करते थे। कभी-कभी कंचों के कारण जेब में छेद हो जाती थी और कंचे गिरने लगते थे। एक बार गणित की कक्षा में एक छात्र की गेंद से कंचा गिर गया। कंचा उछलता हुआ टीचर की तरफ बढ़ गया। टीचर बहुत कड़क थी। उसने कंचे को उठाकर टेबल पर रखा और पूछा कि वह किसका है। किसी ने जवाब नहीं दिया। इतने में एक छात्र उठा। उसने कंचे को उठाकर उसकी खूब जांच परख की और फिर कहा कि यह उसका नहीं है। पूरी क्लास को सजा मिली। इसके बाद काफी समय बीत गया। कुछ वर्षों के बाद जब बच्चों के विषय लेने की बात आई तो गणित की उस टीचर ने देखा कि जिस बच्चे ने कंचे का निरीक्षण किया था, उसने कॉमर्स विषय लिया है। उसने छात्र को विज्ञान लेने के लिए प्रेरित किया। आगे चलकर यह छात्र महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बना। आरएफआईडी तकनीक को भारत लाकर उन्होंने अपनी प्रतिभा को साबित किया। उसके अन्दर छिपी प्रतिभा को उसकी टीचर ने पहचान लिया था।
जीवन में अंधानुकरण एवं देखादेखी से बचने की सलाह देते हुए उन्होंने कहा कि किसी बात को समझने के लिए ध्यान लगाकर सुनना भी जरूरी है। एक खेल से उन्होंने इसे स्पष्ट किया। उन्होंने चेहरे के अंगों का नाम लेते हुए अपनी उंगली से उन्हें छूना शुरू किया और बच्चों से इसका अनुकरण करने को कहा। एक बार उन्होंने चीक कहा और ठोढ़ी को छुआ तो आधे से ज्यादा बच्चों ने भी ऐसी ही किया। तब उन्होंने कहा कि चीक का मतलब तो गाल होता है फिर उंगली ठोढ़ी पर क्यों? उन्होंने कहा कि ऐसी गलतियों से बचने के लिए ही सुनने की क्षमता को विकसित करने की जरूरत है। ताकि हम स्वविवेक से फैसले कर सकें। विषय या करियर को चुनते समय भी हमें अपने विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए। पेरेन्ट्स और टीचर्स इस काम में बच्चों की मदद कर सकते हैं, उनका मार्गदर्शन कर सकते हैं।
स्कूली बच्चों की प्रतिभा को पहचानने और उन्हें सही करियर के चुनाव के लिए प्रेरित करने के लिए आयोजित ‘मार्गदर्शन’ कार्यशाला को भारत के पूर्व राजदूत दीपक वोहरा एवं प्रसिद्ध शिक्षाविद तथा करियर काउंसलर जवाहर सूरी शेट्टी ने भी संबोधित किया। इस अवसर पर संतोष रूंगटा समूह के निदेशक वित्त एवं प्रशासन सोनल रूंगटा, डीन डॉ मनोज वर्गिस, सभी महाविद्यालयों के प्राचार्य, विभागाध्यक्ष, प्राध्यापक सहित 55 स्कूलों के 3000 से अधिक विद्यार्थी मौजूद थे।