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किन्नरों की इन तालियों के पीछे छिपी है शोषण उत्पीडऩ की कहानी

Oct 23, 2017

sigma-upadhyay-playभिलाई। किन्नरों के बारे में साधारण समाज बहुत कम जानता है। उन्हें लगता है कि बात-बात पर ताली बजाने वाले इन किन्नरों के जीवन में सिर्फ मौज मस्ती है। समाज मानता है कि किन्नर बेहद ताकतवर होते हैं और उन्हें दर्द नहीं होता। पर यह कितना बड़ा झूठ है, इसका मंचन किया एक युवा रंगकर्मी, सिग्मा उपाध्याय ने। नाटक में किन्नरों की समस्याओं को रेखांकित किया गया है। किन्नरों की कोई जुबान नहीं होती। किन्नरों के कोई अधिकार नहीं होते। किन्नरों को चिकित्सा की सुविधा हासिल नहीं है। किन्नरों का कोई घर नहीं है। तालियां बजाकर लोगों का मनोरंजन करने और शुभ अवसरों पर उनकी बलाएं अपने सिर लेकर उन्हें आशीर्वाद देने वाले किन्नरों का स्वयं का जीवन एक अंधे कुएं में ही गुजरता है। एक ऐसा अंधा कुआं जहां सभ्यता की रौशनी नहीं है, जहां सपना देखना गुनाह है, जहां चीखें घुट-घुट कर दम तोड़ देती हैं। 7 Steps around the fireभारत भवन भोपाल से जुड़ी इस कलाकार ने रविवार की शाम 7 स्टेप्स अराउण्ड द फायर नाटक का मंचन किया। एसएनजी ऑडिटोरियम सेक्टर-4 नाट्य प्रेमियों से खचाखच भरा हुआ था। नाटक का आरंभ आग की लपटों में घिरी एक दुल्हन की चीखों से होता है और अंत एक पुरुष और एक किन्नर की आत्माओं के मिलन से। लगभग डेढ़ घंटे के इस नाटक में किन्नरों के जीवन के उस पक्ष को बेहद खूबसूरती से उकेरा गया है, जिसके बारे में वृहदतर समाज शायद कुछ भी नहीं जानता।
उपमुख्यमंत्री के पुत्र को एक किन्नर से प्यार हो जाता है। वह उससे विवाह कर लेता है। उसके पिता अपने आदमियों से किन्नर को जिन्दा जला देता है। किन्नर की जली हुई लाश बरामद होती है तो उसके ही समुदाय की एक साथी किन्नर को बिना किसी सबूत के पुलिस उठा ले जाती है। उसे पुरुषों के साथ एक सेल में कैद किया जाता है जहां उसका दैहिक शोषण और उत्पीडऩ होता है। स्थानीय डीसीपी की पत्नी किन्नरों के जीवन पर शोध कर रही है। वह गिरफ्तार किन्नर से मिलती है और उसकी मदद करने की कोशिश करती है। इस सिलसिले में वह बंदी किन्नर की मुंहबोली मां से मिलती है। उसे पता चल जाता है कि मृतक बंदी की बहन थी। उसे यह भी पता चल जाता है कि किन्नर की हत्या किसने की है। इधर घर में खुद उसकी हालत बहुत अच्छी नहीं है। संतानहीनता के लिए उसके डीसीपी पति जिम्मेदार हैं पर वह डाक्टर के पास नहीं जाना चाहते। वह उनसे कुछ भी नहीं कह पाती।
नाटक का अंतिम दृश्य उपमुख्यमंत्री के पुत्र के विवाह का है। वह विवाह नहीं करना चाहता। यह उसका दूसरा विवाह है। उसकी पहली पत्नी, जिससे वह बेइंतहा प्यार करता था, किन्नर थी और उसे घरवालों ने ही गायब करवा दिया है। वह विवाह से इंकार कर देता है और खुदकुशी कर लेता है। दो आत्माओं के मिलन के साथ नाटक खत्म होता है।
पुलिस हवालात में पुरुष के साथ कैद किन्नर की चीखें बताती हैं कि उसके साथ वहां क्या हो रहा है। उसे जमानत पर छोडऩे से पहले डीसीपी मार-मार कर उसकी हड्डियां तोड़ देता है। पर हाय री किस्मत। वह बिना इलाज के उसी तरह अपने डेरे में पड़ी रहने के लिए विवश है। कोई भी सभ्य डाक्टर किन्नरों का इलाज जो नहीं करता। वह बार-बार डाक्टर की मांग करती है पर बेबस मां उसे सीने से लगाकर रोने के सिवा कुछ भी नहीं कर पाती। किन्नरों की कहीं नहीं सुनी जाती। पुलिस भी उन्हें डांटती, डपटती और पीटती रहती है।
नाटक इस मायने में बेहद सफल रहा कि मंचन के बाद जब प्रेक्षकों से संवाद किया गया तो प्रत्येक सवाल किन्नरों की जीवन से जुड़ा हुआ था। भीतर तक हिले हुए लोग आंदोलित थे और किन्नरों के लिए कुछ करना चाहते थे।
यह नाटककार सिग्मा का पहला स्वतंत्र मंचन था। सभी कलाकार पहली बार मंच पर थे। सात-आठ दिन में तैयार किए गए इस नाटक में प्रत्येक किरदार ने स्वाभाविक काम किया है जो चकित करता है। सेट्स और प्राप्स उनकी टीम ने ही तैयार किया था। कुछ छोटी छोटी चूकें हुईं जिनपर ध्यान दिया जाना जरूरी है। कार में ड्राइवर और डीसीपी की पत्नी के बीच लंबे संवाद हैं। कार में चालक और सवार को बायीं तरफ बैठे दिखाया गया है। भारतीय कारों में चालक दाहिनी ओर बैठता है। कार रुकने पर चालक और सवार अपनी जगह पर ही खड़े हो जाते हैं, जो संभव नहीं है। नाटक के एक दृश्य में घायल किन्नर चल फिर नहीं पा रहा है। बैठे बैठे वह दर्द से चीख उठता है। पर इसी दृश्य में वह अपनी मां की गोद में सिर रखकर सो जाता है और लोरियां सुनता है। ऐसा करते हुए वह अपने पैरों को मोड़कर बहुत आराम से मां की गोद में समा जाता है, जो एक घायल के लिए संभव नहीं है। पर नाटक की गहनता इतनी है कि इन पर ध्यान देने का वक्त नहीं मिलता। प्रेक्षक अंत तक बंधे रह जाते हैं।
प्रमुख किरदार : नाटक के प्रमुख किरदारों को सिग्मा उपाध्याय, रितांक शर्मा, यतीन्द्र पात्रे, योगेश सिंह ठाकुर, अमित चंद्रिकापुरे, आनंद साहू, नित्यानंद मिश्रा, सुरेश कुमार सोनी, क्षितिज भदौरिया, तेजरात साहू, परिधि उपाध्याय ने निभाया है। महेश दत्तानी के इस नाटक का अनुवाद और निर्देशन सिग्मा उपाध्याय ने किया है। संगीत परिकल्पना आशीष मिश्रा, प्रकाश क्रिपेश जानि, सेट डिजाइन गोकुल चतुर्वेदी, रूप सज्जा स्मिता वर्मा, नैंसी जैन, मंच सज्जा अनीता उपाध्याय, बॉडी लैंग्वेज गौरव कटेन्द्र तथा फोटो-वीडियो आदेश गुप्ता का है। किन्नरों की भूमिका को जीवंत रूप देने में किन्नर कंचन और यास्मीन का भी सराहनीय योगदान रहा है।

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