भिलाई। स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती महाविद्यालय में ई पत्रिका साहित्य शिल्पी के संपादक एवं वरिष्ठ प्रबंधक (पर्यावरण) राजीव रंजन प्रसाद का प्रेरणास्पद व्याख्यान ‘संघर्ष से शिखर तक’ का आयोजन किया गया। उन्होेंने अपने व्याख्यान में अपने जीवन के कटु अनुभवों और उससे जुड़ी सच्चाई को बताया और किस तरह इन झंझावतों और विपरीत परिस्थितियों के बावजूद वो इस मुकाम तक पहुंचने में सफल हुये। बस्तर और नक्सलवाद के ऊपर महत्वपूर्ण पुस्तकों के रचयिता श्री राजीव रंजन ने बस्तर का सूक्ष्म अध्ययन किया है और उससे जुड़ी सच्चाइयों को बहुत ही संजीदगी से अपनी पुस्तक में प्रस्तुत किया है। संघर्ष की दास्तान बचपन में पिता का साया उठने से ही प्रारंभ हुआ, माता जी का बहुत सहयोग मिला। केन्द्रीय विद्यालय तथा बैलाडीला के विद्यालय में अध्ययन के दौरान साहित्य में रूचि होने लगी। शारीरिक रूप से अक्षमता पोलियो होने के बावजूद इन्होंने अपनी जंग जारी रखी। स्कूलों में होने वाली हर प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया। छात्रावासी मित्रों ने हमेषा आत्मविष्वास बढ़ाया। मैत्रेयी संघ के सत्यजीत भट्टाचार्य द्वारा रचित नाटक ‘हल्लाबोल’ में सूत्रधार के रूप में काम किया।
इन गतिविधियों के बावजूद लगातार अच्छे अंक लाने के बाद भी (जिओलॉजी में स्वर्ण पदक) नौकरी में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। विकलांग लोगों के लिये भी लिखित परीक्षा में पृथक मापदंड होना चाहिये। रिजनल रिसर्च लैबोरेटरी, आरएलए भोपाल में बाईस सौ पचास रूपय के मासिक वेतन में पहली नौकरी की। इस नौकरी ने बहुत परेषान किया हतोत्साहित किया गया पर इन्होंने हिम्मत नहीं हारी। इसी दौरान ट्रेन हादसे में पैर का आॅपरेषन हुआ, काफी दिन बिस्तर पर रहे। नौकरी भी छूट गई। एनएचपीसी में सिलेक्षन के लिये जाते वक्त ट्रेन में सूटकेस चोरी हो गया जिसमें सारे ओरिजनल डॉक्यूमेंंट्स थे। प्लास्टर की हालत में इन्होंने इंटरव्यू दिया और ललित सिंघानिया जी के सतत सहयोग से नौकरी मिली।
नक्सली मुठभेड़ में दोस्त की मृत्यु होने के बाद बस्तर के ऊपर लिखना शुरू किया। आमचो बस्तर लिखने के दौरान इन्होंने बस्तर पर शोध किया और पाया कि बस्तर के और भी रूप-रंग हैं और बहुत सी संस्कृतियों का निर्वहन बस्तर में होता है, उनका मानना है कि लोग बस्तर को सिर्फ नक्सलवाद के नाम से ना जानें। उन्होंने बताया कि किताबें सबसे अच्छी मित्र होती हैं तथा मुझे हर परिस्थिति में किताबों का साथ मिला। मेरे लिये गौरवपूर्ण क्षण था जब मुझे राहूल पंडिता की किताब का क्रिटिक लिखने का अवसर प्राप्त हुआ।
वर्तमान में भोपाल में महत्वपूर्ण पद का दायित्व निर्वहन करते हुये इतने सक्रिय हंै की इनकी 2011 से 2017 तक सतरह किताबें बस्तर के ऊपर आ चुकी हैं जिसमें लाल अंधेरा, दंत क्षेत्र महत्वपूर्ण कृतियां हैं। जिसमें पहली पुस्तक यश पब्लिकेषन से प्रकाशित हुई जिसका विमोचन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने किया है। तीन छात्र इनके ऊपर पीएचडी कर रहे हैं। जीवन में समय प्रबंधन करना अत्यंत आवश्यक है इसकी वजह से ही ये हर क्षेत्र में सक्रिय रह पाते हैं। विपरित परिस्थितियों में हिम्मत ना हारें, प्रयास जारी रखें, सफलता अवश्य मिलेगी।
सामाजिक कार्यों में निरंतर सक्रिय श्रीमती रचना नायडू ने बताया कि किस तरह मुश्किल हालातों से गुजरकर राजीवरंजन प्रसाद जी ने अपनी पहचान बनाई और वह लगातार बस्तर के लिये कार्य कर रहे हैं ।
महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. श्रीमती हंसा शुक्ला ने कहा कि असंभव कुछ भी नहीं। मन के जीते जीत है मन के हारे हार। प्रयास करना कभी भी नहीं छोड़ना चाहिये। हमारी इच्छा शक्ति के आगे बड़ी से बड़ी परेशानियां और मुश्किलों को घूटना टेकना पड़ता है। कार्यक्रम की संयोजिका सहा.प्रा. श्रीमती शैलजा पवार ने कहा कि इस व्याख्यान के आयोजन का उद्देश्य विद्यार्थियों को प्रेरित करना है कि वह असफलता से हार ना मानकर उसका सामना करें तो विद्यार्थी जीवन में सफल अवश्य होंगे। इस आयोजन में संचालन डॉ. तृषा शर्मा, एसोसिएट प्राध्यापक शिक्षा विभाग ने किया। कार्यक्रम में महाविद्यालय के समस्त विद्यार्थी एवं प्राध्यापक गण मौजूद थे।