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कुष्ठरोगियों के मसीहा पद्मश्री दामोदर बापट नहीं रहे! नहीं किया विवाह

Aug 18, 2019

बिलासपुर। पद्मश्री दामोदर गणेश बापट का 87 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। वे लंबे समय से बीमार थे। उन्होंने 42 सालों तक कुष्ठ पीड़ितों के इलाज और उनके सामाजिक-आर्थिक पुनर्वास के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। वे चांपा से आठ किलोमीटर दूर ग्राम सोठी में भारतीय कुष्ठ निवारक संघ द्वारा संचालित आश्रम से जुड़े थे। मानव सेवा के लिए जीवन समर्पित करने वाले इस युग ऋषि ने देहदान का भी संकल्प लिया था। तदनुसार उनकी पार्थिव काया रिम्स बिलासपुर को समर्पित कर दी गई। इस कुष्ठ आश्रम की स्थापना सन 1962 में कुष्ठ पीड़ित सदाशिवराव गोविंदराव कात्रे ने की थी।बिलासपुर। पद्मश्री दामोदर गणेश बापट का 87 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। वे लंबे समय से बीमार थे। उन्होंने 42 सालों तक कुष्ठ पीड़ितों के इलाज और उनके सामाजिक-आर्थिक पुनर्वास के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। वे चांपा से आठ किलोमीटर दूर ग्राम सोठी में भारतीय कुष्ठ निवारक संघ द्वारा संचालित आश्रम से जुड़े थे। मानव सेवा के लिए जीवन समर्पित करने वाले इस युग ऋषि ने देहदान का भी संकल्प लिया था। तदनुसार उनकी पार्थिव काया रिम्स बिलासपुर को समर्पित कर दी गई। इस कुष्ठ आश्रम की स्थापना सन 1962 में कुष्ठ पीड़ित सदाशिवराव गोविंदराव कात्रे ने की थी। बिलासपुर। पद्मश्री दामोदर गणेश बापट का 87 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। वे लंबे समय से बीमार थे। उन्होंने 42 सालों तक कुष्ठ पीड़ितों के इलाज और उनके सामाजिक-आर्थिक पुनर्वास के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। वे चांपा से आठ किलोमीटर दूर ग्राम सोठी में भारतीय कुष्ठ निवारक संघ द्वारा संचालित आश्रम से जुड़े थे। मानव सेवा के लिए जीवन समर्पित करने वाले इस युग ऋषि ने देहदान का भी संकल्प लिया था। तदनुसार उनकी पार्थिव काया रिम्स बिलासपुर को समर्पित कर दी गई। इस कुष्ठ आश्रम की स्थापना सन 1962 में कुष्ठ पीड़ित सदाशिवराव गोविंदराव कात्रे ने की थी।वनवासी कल्याण आश्रम के कार्यकर्ता श्री बापट सन 1972 में इससे जुड़े। उन्होंने कुष्ठ पीड़ितों के इलाज और उनके सामाजिक-आर्थिक पुनर्वास के लिए सेवा के अनेक प्रकल्पों की शुरूआत की। श्री बापट मूलत: ग्राम पथरोट, जिला अमरावती (महाराष्ट्र) के निवासी थे। नागपुर से बीए व बीकॉम की पढ़ाई पूरी की। मात्र 9 वर्ष की आयु में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सानिध्य पाकर उन्होंने मन में सेवा की भावना को गहराई से आत्मसात किया। श्री बापट ने कई स्थानों में नौकरी की, लेकिन उनका मन तो बार बार समाज सेवा की ओर ही जाता था। इसी मकसद से वे छत्तीसगढ़ के वनवासी कल्याण आश्रम जशपुरनगर पहुंचे थे।
आजीवन अविवाहित रहकर संघ के स्वयंसेवक के रूप में सेवा करने का संकल्प ले चुके श्री बापट को वनवासी ग्रामीण क्षेत्रों में भेजा गया था और उन पर वनवासियों को पढ़ाने का जिम्मा सौंपा गया। यहां रहते हुए ही श्री बापट को ग्राम सोठीं स्थित कुष्ठ निवारक संघ की जानकारी हुई। वे कुष्ठ पीड़ितों की सेवा के लिए शुरू किए गए कार्य को देखने आए और काफी प्रभावित हो गए।
दामोदर गणेश बापट के समर्पण का ही नतीजा था कि संस्था परिसर एक स्वतंत्र ग्राम बन गया है। छात्रावास, स्कूल, झूलाघर, कम्प्यूटर प्रशिक्षण, सिलाई प्रशिक्षण, ड्राइविंग प्रशिक्षण, अन्य एक दिवसीय प्रशिक्षण, चिकित्सालय, रूग्णालय, कुष्ठ सेवा, एंबुलेंस, चलित औषधालय एंबुलेंस व कुपोषण निवारण, कृषि, बागवानी, गौशाला, चाक निर्माण, दरी टाटपट्टी निर्माण, वेल्डिंग, सिलाई केंद्र, जैविक खाद, गोबर गैस, कामधेनु अनुसंधान केंद्र, रस्सी निर्माण सहित अन्य गतिविधि यहां संचालित है। श्री बापट के प्रयास से इस संघ को अनेक पुरस्कार व सम्मान पहले ही मिले।

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