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पूरा नहीं हुआ छत्तीसगढ़ बनाने वालों का सपना : मीसा बंदी आनंद कुमार

Sep 23, 2018

Anand Kumar Agrawal RSSभिलाई। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता दाऊ आनंद कुमार अग्रवाल का मानना है कि जिन उद्देश्यों को लेकर छत्तीसगढ़ का गठन किया गया था, वह अब तक पूरा नहीं हुआ है। आज भी शोषक वर्ग हावी है। छत्तीसगढ़िया चारों तरफ पिट रहा है और बाहरी लोग राज कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ को लूटने वाले बाहरी नौकरशाह अब नेता बनकर इस लूट खसोट को जारी रखने का मंसूबा बना चुके हैं। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के तृतीय वर्ग उत्तीर्ण दाऊ आनंद कुमार ने लगभग तीन दशक तक पृथक छत्तीसगढ़ राज्य का आंदोलन चलाया। ठाकुर गौतम सिंह, डॉ विमल कुमार पाठक, प्रभुनाथ मिश्र के साथ मिलकर वे भी संघर्ष कर रहे थे। इस लंबे आंदोलन के बाद अटलजी की सरकार ने पृथक छत्तीसगढ़ राज्य का गठन कर दिया। राज्य अलग हो गया। खूब पैसा भी आया। राज्य ने आंकड़ों में खूब तरक्की की पर आम छत्तीसगढ़िया का जीवन नहीं बदला।
दाऊ आनंद कुमार बताते हैं कि किसानों की हालत सुधारने के लिए कुछ भी नहीं किया गया जबकि ज्यादातर छत्तीसगढ़िया किसान ही थे। न तो कोल्ड स्टोरेज बने और न ही सिंचाई का प्रबंध हो पाया। नतीजा यह निकला कि छत्तीसगढ़ियों ने अपनी पुश्तैनी जमीनें बाहरी सम्पन्न किसानों को बेच दी। डिग्री लेना तो आसान हो गया पर नौकरियों का कोई इंतजाम नहीं हो पाया। शिक्षित और उच्च शिक्षित युवा छोटी-मोटी नौकरियां करके किसी तरह अपना जीवन यापन कर रहे हैं।
बाहरी और छत्तीसगढ़िया का अंतर स्पष्ट करते हुए आनंद कुमार ने कहा कि जो लोग अपना परिचय सिर्फ छत्तीसगढ़ी कहकर देते हैं, केवल उन्हें ही वे छत्तीसगढ़ी मानते हैं। बाहरी वो लोग हैं जो खुद को राजस्थान या हरियाणा का मारवाड़ी पहले बताते हैं और बाद में लोकल जोड़ देते हैं। ऐसा ही अन्य राज्यों से यहां आकर बस गए लोग भी करते हैं। इन्हें आप छत्तीसगढ़ी कैसे कह सकते हैं।
स्वयं को छत्तीसगढ़ अग्रवाल बताते हुए वे कहते हैं कि बृजमोहन और अमर अग्रवाल बाहरी अग्रवाल हैं। उनके साथ छत्तीसगढ़ी अग्रवालों का रोटी बेटी का रिश्ता नहीं होता। इसी तरह छत्तीसगढ़ पर राज कर रहे अधिकांश लोग बाहरी हैं। इतना ही नहीं, सभी प्रमुख पदों पर भी बाहरी लोग ही बैठे हैं। ये सब मिलकर छत्तीसगढ़ का शोषण कर रहे हैं।
मीसा ने बहुत दुख दिया
मीसा के तहत आनंद कुमार 20 माह तक जेल में रहे थे। उनके जेल में रहने के दौरान उनके पिता ने उनकी टाइपराइटरों को आधी कीमत पर बेच दिया था। उनका टाइपिंग इंस्टीट्यूट था जिसमें 10 टाइपराइटर थे। पर अब मीसा बंदी होने के ऐवज में मिलने वाली मोटी पेंशन ही उनके जीवन का सहारा है।

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