ऋषि मुनियों को भी थी नैनो प्रौद्योगिकी की जानकारी
भिलाई। संतोष रूंगटा समूह द्वारा संचालित जीडी रूंगटा कॉलेज ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी में नैनोतकनीक पर अतिथि व्याख्यान का आयोजन किया गया। शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्वशासी स्नातकोत्तर महाविद्यालय की डॉ पूर्णा बोस ने नैनो प्रौद्योगिकी पर अपने विचार रखते हुए कहा कि हमारे ऋषि-मुनियों को भी इसकी जानकारी थी। विभिन्न क्षेत्रों में उनके द्वारा किए गए प्रयोगों से यह बात साबित हो चुकी है। सूक्ष्म तथा अति सूक्ष्म पदार्थों के प्रभाव से वे भलीभांति परिचित थे।डॉ पूर्णा बोस ने कहा कि आज दुनिया छोटे से छोटा, बेहतर और मजबूत की खोज में लगी हुई है। कभी एक कमरे के आकार वाला कम्प्यूटर आज एक छोटे से चिप में समा कर हमारी हथेलियों में आ गया है। इसकी क्षमता भी हजारों गुना बढ़ गई है। विभिन्न रोगों के इलाज के लिए भी इस तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस क्षेत्र में शोध की भी असीम संभावनाएं हैं।
डॉ बोस ने नैनो प्रौद्योगिकी में हो रहे शोधों की चर्चा की। उन्होंने बताया कि जीव-जन्तुओं के शरीर में नया सेल भेजकर गंभीर शारीरिक परेशानियां दूर करने में इस तकनीक का चिकित्सा जगत में इस्तेमाल हो रहा है। इस तकनीक से हृदय को स्वस्थ बनाने पर भी शोध हो रहे हैं। आज इसका उपयोग बायोटेक्नोलॉजी, भौतिकी तथा रसायन सहित इंजीनियरिंग के क्षेत्र में भी हो रहा है।
डॉ बोस ने बताया कि नैनो तकनीक का इस्तेमाल हमारे ऋषि-मुनि भी करते रहे हैं। मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघरों में रंगीन शीशों का उपयोग यह साबित करता है कि रंगों के सूक्ष्म प्रभाव को हम जानते थे। सोलर सेल के निर्माण, बैटरी लाइफ को बढ़ाने, दवाइयों के निर्माण सहित क्वांटम डाट व सेंसर में भी इसका उपयोग हो रहा है।
जहां डॉ. बोस ने विद्यार्थियों को शोध के लिए प्रोत्साहित करते हुए कहा इसमें फाइनेंस आड़े आती है। पर आज इसके लिए शासन व संबंधित विभाग से मदद लेकर आगे बढ़ा जा सकता है।
बीएससी और एमएससी के विद्यार्थियों के लिए इस व्याख्यान का आयोजन प्राचार्य डॉ. सीमा मिश्रा के मार्गदर्शन में हुआ। प्रो. अंबुज पांडे, डॉ. सीमा वर्मा, ज्योति तिवारी, आशा मानिकपुरी, अमित नायडू, डॉ. परक शर्मा, अरूण, ज्योति खंडेलवाल, मंजूषा ताम्रकार आदि का सहयोग रहा।