भिलाई। अस्थमा या दमा बड़ों के साथ-साथ बच्चों को भी प्रभावित करती है। बच्चों में यह स्वाभाविक विकास को प्रभावित कर सकती है। बच्चा खेलकूद से वंचित हो जाता है और उसका भोजन और नींद भी प्रभावित होती है। यदि इसका सही प्रबंधन न किया जाए तो यह घातक सिद्ध हो सकता है। इसके लिए जरूरी है कि इसके लक्षणों को समय रहते पहचान लिया जाए और चिकित्सक की सलाह ली जाए। हाइटेक सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ मिथिलेश देवांगन ने बताया कि अस्थमा आनुवांशिक हो सकता है। इसलिए माता-पिता या परिवार में अगर किसी को भी दमा हो तो बच्चे में दमा होने की संभावना बढ़ जाती है। ठंड में घूमना, धूल, धुआं या फूलों के परागकणों के कारण भी अस्थमा हो सकता है। यदि इसे नियंत्रित नहीं किया गया तो यह खतरनाक साबित हो सकता है। उन्होंने बताया कि हालांकि बच्चों का दमा वयस्कों के दमा से कोई अलग बीमारी नहीं है पर बच्चों को कुछ अलग चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इस बीमारी की वजह से बच्चे अस्पताल के आपातकालीन विभाग में ज्यादा आते हैं। उसका खेलना कूदना बंद हो जाता है और स्कूल जाना भी प्रभावित होता है। अगर इसका सही इलाज कराया जाए तो यह बीमारी अपने काबू में रहेगी और बच्चों के बढ़ते हुए फेफड़ों को नष्ट नहीं करेगी।
सामान्यतः इस बीमारी के लक्षण निम्न हैं।
1. लगातार खांसी एवं वायरल इंफेक्शन होना
2. सांस लेने पर सीटी जैसी आवाज आती है
3. सांस लेने में कठिनाई
4. सीने में जकड़न
बच्चों में अस्थमा के कारण होने वाली परेशानियां
1. सांस लेने में तकलीफ, खांसी यह घबराहट की वजह से नींद में परेशानी
2. लगातार खांसी और घरघराहट जो सर्दी या फ्लू की वजह से और बिगड़ जाता है
3. सांस लेने में परेशानी होने पर खेलकूद और कसरत में रुकावट
4. नींद पूरी नहीं होने के कारण हमेशा थकान का बने रहना
डॉक्टरी सलाह कब लें
1. निरंतर खांसी जो रोजमर्रा की जिन्दगी में बाधा डाले
2. जब आपका बच्चा सांस लेते समय सीटी जैसी आवाज निकाले
3. सांस तेज लेना या सांस लेने में परेशानी
4. छाती में जकड़न की शिकायत
5. बार-बार निमोनिया की शिकायत होना
आपात चिकित्सा से सम्पर्क कब करें
1. जब सांस लेने के लिए बच्चे को वाक्य बीच में रोकना पड़े
2. जब बच्चा सांस लेने के लिए पेट या छाती की मांसपेशियों का सहारा ले
3. सांस लेते समय उसके नथुने फूलने लगें।
4. जब सांस छोड़ते समय पेट पूरी तरह से पिचकाने लगे।