प्रत्येक 12वें साल गिरती है बिजली और टुकड़े-टुकड़े हो जाता है शिवलिंग
भिलाई। बीएसपी के बुजुर्ग कार्मिकों की एक टीम ने हिमालय को चुनौती दे डाली। इनमें कुछ सेवानिवृत्त कार्मिक भी शामिल थे। यह टीम यूथ होस्टल एसोसिएशन आफ इंडिया की अगुवाई में गए 50 सदस्यीय दल का हिस्सा थी। गलते इस्पात के बीच अपना कर्मजीवन गुजारने वाले इन कार्मिकों ने तंबुओं में रहकर बर्फीला सफर तय किया। छत्तीसगढ़ी गीतों पर जमकर नृत्य किया। बर्फीली वादियों में राउत नाचा कर सबका मन मोह लिया।इस दल के सदस्यों से ट्रेन में मुलाकात हो गई। रात के 12 बज रहे थे। इनकी ऊर्जा का स्तर देखते ही बनता था। कोई गा रहा था तो कोई सीट पर उंगलियों की थाप से संगत कर रहा था। 14 दिन की हिमालय यात्रा के किस्से और संस्मरणों की बौछार इतनी रोचक थी कि आसपास के लोग भी कंबल से सिर निकालकर इसका आनंद ले रहे थे। वे दंग थे इन बुजुर्गों का उत्साह और साहस देखकर।
दल में शामिल राजेश महाजन से बातचीत शुरू हुई। पीईएम विभाग के श्री महाजन ने बताया कि बीएसपी से कुल 10 सदस्य इसमें शामिल हुए थे। इनमें अवकाश प्राप्त कार्मिक पिलेश कुमार सिंह और संजय कुमार इंगले के अलावा एसएमएस-1 के एजीएम ए आर मंडल, डिप्टी मैनेजर दीपक कुमार, ए मोहन राव, डबल्यूआरएम के हृदय पाल सिंह उप्पल, एसएमएस-1 के नवीन कुमार सिंह, ओएचपी के जय किशोर ब्रम्हे तथा फोर्ज शॉप के प्रभाकर रेगे शामिल थे।
दल 4 मई को भिलाई से अंबाला के लिए रवाना हुआ। यात्रा के तीसरे दिन अंबाला से चंडीगढ़ होते हुए शाम 3:40 बजे बेस कैम्प पहुंच गए। यहां पहुंचते ही उन्हें गर्म ब्लैंकेट, स्लीपिंग बैग और स्लीपिंग शीट प्रदान कर दिया गया। अगले दिन 7 मई को सुबह अक्लेमेटाइजेशन ट्रेकिंग की। मौसम के अनुकूलन के लिए की गई यह पद यात्रा बेहद महत्वपूर्ण होती है। लौटने के बाद भोजन किया। इसके बाद ट्रेकिंग से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियां प्रदान की गर्इं जिसमें मेडिकल जानकारियां भी शामिल थीं। रात को कैम्प फायर हुआ जिसमें इस दल ने छत्तीसगढ़ी लोकसंस्कृति की जोरदार प्रस्तुति दी। इस दिन उन्होंने राखी सावंत को शूटिंग करते हुए भी देखा। अगले दिन भी अनुकूलन की यात्र हुई और फिर अपना अतिरिक्त सामान बेस कैम्प में जमा कराकर अगले दिन ट्रेकिंग पर रवाना होने की तैयारियों को अंतिम रूप दिया।
महाजन ने बताया कि 9 मई को उन्होंने चढ़ाई शुरू की और सोलाटंकी पहुंचे। यह स्थान 7930 फीट की ऊंचाई पर है। यहां से बस से चनसारी गांव पहुंचे। इस बीच बिजली महादेव के दर्शन भी किए। यह स्थान कुल्लू के अधीन आता है। पास ही व्यास और पार्वती नदी का संगम है। माथान की पहाड़ियों पर एक अद्भुत घटना के तहत यहां प्रत्येक 12वें वर्ष में शिवलिंग पर बिजली गिरती है और वह टुकड़े-टुकड़े हो जाता है। इसके बाद इसे मक्खन और सत्तू से जोड़ दिया जाता है और पूजा पाठ शुरू हो जाता है।
10 मई को चढ़ाई फिर शुरू होती है और यह दल 9187 फीट की ऊंचाई पर माउंटीनाग पहुंच गए। सात किलोमीटर की यह यात्रा काफी थका देने वाली थी। रात्रि विश्राम के बाद 11 मई को पुन: चढ़ाई शुरू की और 9793 फीट ऊंचाई पर उबला थैच पहुंचे। 12 मई को 10692 फीट की ऊंचाई पर दोहरा नाला और फिर 13 मई को 14 किलोमीटर की यात्रा कर चंरदरखानी दर्रे से होते हुए 12190 फीट की ऊंचाई पर स्थित नया टपरू पहुंच गए। 14 को वापसी शुरू हुई और 15 चंडीगढ़ पहुंच गए।
महाजन ने बताया कि यूथ होस्टल एसोसिएशन के साथ की गई यह यात्रा बेहद रोमांचक, ऊर्जा से परिपूर्ण और यादगार रही। पहाड़ों में तंबुओं में रात गुजारने का अनुभव हमेशा याद रहेगा। बर्फ में किसी पर्वतारोही की तरह चलना, चढ़ना और फिसलना और फिर हंसते हुए आगे बढ़ जाना, जीवन का एक बड़ा सबक था। कभी जूतों में बर्फ घुस जाती तो कभी फिसलते समय कपड़ों में। न कपड़े ढीले कर उसे निकालते बनता था और न ही जूते उतारने की हिम्मत पड़ती थी। फिर भी सबका मनोबल ऊंचा था। हर कठिनाई को यह दल उसी तरह मात देता गया जैसा कि भिलाई इस्पात संयंत्र में देते रहे हैं।